ब्लागियात-2
कोई इसको भडास कहता है,
कोई 'मुखवास' इसको कहता है,
है किसी के लिए विचार की बात,
कोई बकवास इसको कहता है.
चोट दिल पर लगी ब्लॉग बना,
खोट से मन दुखा ब्लॉग बना,
ज्योत की लौ बढ़ी ब्लॉग बना,
मौत की 'आगही' ! ब्लॉग बना.
पहले बन-बन के मन में मिटता था,
अब तो बनने से पहले छपता है,
जाल [net] फैला हुआ फिजाओ में,
जो हर-एक सोच पर झपट ता है.
दिल के छालो का नाम भी है ब्लॉग,
मन के जालो का नाम भी है ब्लॉग,
उजले-काले का काम भी है ब्लॉग,
सच पे तालो का नाम भी है ब्लॉग.
सुबह दम शबनमी ब्लॉग बना,
दिन चढा टेक्नीकल ब्लॉग बना,
सुरमई शाम में शराबी सा,
आलसी, रात में ब्लॉग बना.
-मंसूर अली हाश्मी
2 comments:
"पहले बन-बन के मन में मिटता था,
अब तो बनने से पहले छपता है,"
वाह क्या बात कही है. चिट्ठा मन की अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम बन गया है!.
-- शास्त्री जे सी फिलिप
-- समय पर प्रोत्साहन मिले तो मिट्टी का घरोंदा भी आसमान छू सकता है. कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर उनको प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)
दिल के छालो का नाम भी है ब्लॉग,
मन के जालो का नाम भी है ब्लॉग,
उजले-काले का काम भी है ब्लॉग,
सच पे तालो का नाम भी है ब्लॉग।
खूब कही है, हाशमी साहब ऐसा ही है।
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