समझौता
वातावरण में शोर न पैदा करेंगे हम,
दिल के दीये जला के उजाला करेंगे हम.
फोड़ा पटाखा,फहरा पताका है चाँद पर,
दीपावली वही पे मनाया करेंगे हम.
कुर्बानियां तो ईद की करते है बार-बार,
खुद को भी अपने देश पे कुर्बां करेंगे हम.
पटरी से रेल उतर गई, इंजन बदल गया,
भैय्या! कुछ-एक बरस तो अब चारा चरेंगे हम.
'छठ' हम मना न पायेंगे दरया* में अबकी बार,
चौपाटी पर दुकाँ तो लगाया करेंगे हम.
९ के मिलन के साल में नैनो नही मिली,
नयनो में उनको अपनी बिठाया करेंगे हम.
*समुन्द्र
-मंसूर अली हाशमी
9 comments:
मज़ा आया भाई जान !
बड़े सलीके से आपने बहुत सी बातें इशारों में कह दी..........
उम्दा शे'र .............बेहतरीन ग़ज़ल .........
बधाई !
बहुत बढिया .. सुदर रचना के लिए बधाई !!
gr8
लाजवाब है..
नैनो की बजाय नैनो में तो हमेशा बिठाए रखा जा सकता है। गोकि इस नवाज़िश के मायने भी उन्हें समझ आने चाहिए....
कुर्बानियां तो ईद की करते है बार-बार,
खुद को भी अपने देश पे कुर्बां करेंगे हम.
बेहतरीन...रचना...बधाई...
नीरज
बडे गजब के शेर लिखे हैं आपने। आपकी कल्पनाशक्ति गजब की है।
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वातावरण में शोर न पैदा करेंगे हम,
दिल के दीये जला के उजाला करेंगे हम.
भले लगे आपके शेर!
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आप को दीपावली की शुभकामनायें!
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बेहतरीन!!
सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
-समीर लाल ’समीर’
फोड़ा पटाखा,फहरा पताका है चाँद पर,
दीपावली वही पे मनाया करेंगे हम.
बहुत खूब ....!!
९ के मिलन के साल में नैनो नही मिली,
नयनो में उनको अपनी बिठाया करेंगे हम.
मंसूर जी कमाल .....!!
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