Wednesday, December 31, 2008

आकलन

आकलन
दौड़-भाग करके हम पहुँच तो गये लेकिन,
रास्ते में गठरी भी छोड़नी पड़ी हमको।

साथ थे बहुत सारे, आस का समन्दर था,
छोड़ बैठे जाने कब, जाने किस घड़ी हमको।

अब है रेत का दरिया, तशनगी का आलम है,
मृग-तृष्णा थी वो , सूझ न पड़ी हमको।

एक सदा सी आती है, जो हमें बुलाती है,
मौत पास में देखी, देखती खड़ी हमको।

अलविदा कहे अबतो, फ़िर कहाँ मिलेंगे अब,
अंत तो भला होगा,चैन है बड़ी हमको।

-मन्सूर अली हाशमी

4 comments:

Anonymous said...

साथ थे बहुत सारे, आस का समन्दर था,
बिछड़े एक-एक करके,जाने किस घड़ी हमको।"
सुभानल्लाह क्या बात कही. शुक्रिया., नया साल आप की खिदमत में ढेर साड़ी खुशियाँ लेकर आए, यही इन्तिज़ा है.

दिनेशराय द्विवेदी said...

यह तो हुई जाने वाले साल की कविता,
आने वाले साल की चाहिए।
नए साल की बधाइयाँ।
नया साल मंगल मय हो!

Unknown said...

बहुत ही अच्छा कविता थी ...नव वर्ष की आपको हार्दिक शुभकामनाएं

वर्षा said...

हां ये तो जाते साल की कविता है कुछ आते साल की कहिये...जो हैं साथ उनकी बुनिये