आज[२४-०४-१०/shabdon ka safar] फिर आपने प्रेरित किया है , आडम्बर के लिए, विडम्बना के साथ खेलना पड़ रहा है:-
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I [मैं] P ह L ए
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आ ! डम्बर-डम्बर खेले,
वो मारेगा तू झेले ,
जो हारेगा वो पहले,
ज़्यादा मिलते है ढेले* [*पैसे]
देखे है ऐसे मेले,
बूढ़े भी जिसमे खेले!
आते है छैल-छबीले,
बाला करती है बेले ,
मैदाँ वाले तो नहले,
परदे के पीछे दहले.
जब बिक न पाए केले* [*केरल के]
वो बढ़ा ले गए ठेले.
"मो"हलत उनको जो "दी" है,
उठ तू भी हिस्सा लेले.
-mansoor ali hashmi
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