आज[२४-०४-१०/shabdon ka safar] फिर आपने प्रेरित किया है , आडम्बर के लिए, विडम्बना के साथ खेलना पड़ रहा है:-
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I [मैं] P ह L ए
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आ ! डम्बर-डम्बर खेले,
वो मारेगा तू झेले ,
जो हारेगा वो पहले,
ज़्यादा मिलते है ढेले* [*पैसे]
देखे है ऐसे मेले,
बूढ़े भी जिसमे खेले!
आते है छैल-छबीले,
बाला करती है बेले ,
मैदाँ वाले तो नहले,
परदे के पीछे दहले.
जब बिक न पाए केले* [*केरल के]
वो बढ़ा ले गए ठेले.
"मो"हलत उनको जो "दी" है,
उठ तू भी हिस्सा लेले.
-mansoor ali hashmi
http://aatm-manthan.com
10 comments:
jabardast hai ji.....
kunwar ji,
वाह वाह!!
सही कहा चचा आपने !!
आज तो छायावाद का असर कुछ अधिक है।
murtaza vakil (ezziconcepts@gmail.com)
mansoor bh shukriya aapki kavita pad kar maza aa gaya.
"achhchhe (good) hai kitne thoren hai(writer)
chaaloo hai dhagle pagle "
- SHK MURTAZA VAKIL........
अली जी सुंदर रचना है ये व, वास्तव में ही यह तो मेरे कार्टून की प्रतिक्रिया के रूप में एकदम सटीक रूप से कंपलीमेंटरी भी.
सही रचना// बेहतरीन!
बहुत खूब।
रचना ....
अच्छी है !
सच कहूं , तो ये शेर पढ़ कर
तब्सिरे के लिए आना ही पडा ...
मैदाँ वाले तो नहले,
परदे के पीछे दहले.
वाह !!
बहुत सुंदर
मातृ दिवस के अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें और मेरी ओर से देश की सभी माताओं को सादर प्रणाम |
"मो"हलत उनको जो "दी" है
वाह! क्या बाँधा है जनाब! मज़ा आ गया।
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