Saturday, December 21, 2013

पा के मंज़िल क्यों भटकने लगे लोग !


पा के मंज़िल क्यों भटकने लगे लोग !

बारी आयी तो जिझकने लगे लोग 
अस्प* की तरह बिदकने लगे लोग       *घोड़ा 

जीत से पहले बहुत थिरके थे !
जीत के बाद बिखरने लगे लोग 

'टोपी' गांधी से भी 'अन्ना' से भी ली
बात से उनकी पलटने लगे लोग 

'दिल्ली' पर लपके थे बिल्ली की तरह 
बनके मूषक क्यों दुबकने लगे लोग ?

'मत' का फिर 'दान' न मिल पाया तो ? 
आप-ही-आप बदलने लगे लोग।  

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-- mansoor ali hashmi   

Sunday, December 15, 2013

गुफ़्तगु……!

         

         गुफ़्तगु……Leaks!

केजरीवाल:   "सर, कार के लिए, हमें लाइसेंस चाहिए। "

राहुल:         " हाज़िर है मेरी कार, अजी बैठ जाईये। "

केजरीवाल:    "वैसे तो पा-प्यादा ही चलने कि खू* हमें            *आदत 
                  बैठे भी कभी गर है, तो अनशन ही पे बैठे !"
    
                  "फिर भी है अगर ज़िद तुम्हे, शर्तें करो पूरी 
                   दिल (ली) वालों की हसरत नही रह जाए अधूरी। "

राहुल:           "लाये है 'लोकपाल' हम, ख़ातिर ही तुम्हारे,
                   न भी नहीं कह पाये अब 'अण्णा' भी बिचारे। "

                   " तेरह-दिनी सरकार* पे, हम ही थे मेहरबाँ    *बाजपाई जी की 
                    चौदह* के लिए ढूँढ रहे है कोई (बे) चारा !"          *२०१४ 

 -- mansoor ali hashmi 
http://mansooralihashmi.blogspot.in    खंडित जनादेश
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Wednesday, December 11, 2013

फ़िल्म तो 'आप' की खूब झक्कास है !



फ़िल्म तो 'आप' की खूब झक्कास है !

बनके झाड़ू सफाई करी 'आप' ने 
उसको संबल मिला है तो इक 'हाथ' से !

परिभाषित नए शब्द होने लगे,
'आप' कहते है कि 'आम' ही 'ख़ास' है। 

कौन कहता है ,"दिल्ली बहुत दूर है"?
आपके पास है, 'आप' के पास है। 

'पंजा' बेदम ! 'कमल' भी बिखर जाएगा 
उनके वि'शवास'* को तो ये विशवास है।      *कुमार विशवास 

अब तो 'अण्णा' भी कायल हुए 'आप' के 
'बाबा राहुल' ने भी कर दिया पास है। 

-Mansoor ali Hashmi

Sunday, November 3, 2013

दुआ












यह 'दुआ' रूपी दीप 'सुबीर संवाद सेवा '  http://subeerin.blogspot.in/2013/11/blog-post.html#links   पर भी जला है :


दीपो के पर्व  दीपावली पर  हार्दिक बधाई एवं शुभ  कामनाएं।

-mansoor ali hashmi













Sunday, October 27, 2013

आपको मुझसे कोई हाजत है ?



आपको मुझसे कोई हाजत है ?

थूक कर चाटने की आदत है, 

बस यही आज की सियासत है !

ख़ूब लम्बे सफ़र पे निकला है,
जिसको कुर्सी की ख़ूब चाहत है.

यूं तो सस्ता बहुत नहीं लेकिन,
माल से ज़्यादा उसकी लागत है.

पस्त इस वास्ते मुसलमाँ है,
मुफ्लिसी, साथ में जहालत* है.           *[अशिक्षा]

अज़्मो-हिम्मत, यकीं-ओ-ख़ुद्दारी,
कामयाबी की ये ज़मानत है. 

-Mansoor ali Hashmi

ग़ज़ल

ग़ज़ल 

संस्कारों की ये विरासत है,
ये मेरा देश है, ये भारत है. 

पैकरे हुस्न है कि आफत है ?
क्या बुलंद उसका क़द्दो-क़ामत है!

मैं, कि शौरीदा सर, गिरफ्ते बला 
उसकी आँखों में बस शरारत है. 

काम शैतान ही के करता है,
फिर भी शैतान ही पे लानत है !

जब भी पढता है, बे-क़रार करे,
है वो 'इन्दौरी' नाम 'राहत' है. 

लफ्ज़ के जोड़-तौड़ में माहिर,
'हाशमी' ही की ये रिवायत है. 

--mansoor ali hashmi 

Tuesday, October 15, 2013

क्या करे !

मॉडर्न हो गए है अब, भगवान् क्या करे!
उनके भी दिल में होते है अरमान क्या करे !!

बेताब हिरनियाँ जो हुई है शिकार को,
अब आप ही बताइये, 'सलमान' क्या करे ?

'रावण' ही अपनी लंका को बैठे लगाए आग,
"प्रभु, बताओ, अब ये हनुमान क्या करे ?"

'आसा' को मिले 'राम' न 'साई' को 'नरायण' ,
अधबीच ही उनको मिल गया शैतान क्या करे!

पैदल ही नापते थे कि गड्डो भरी सड़क,
तिस पर भी बन गया है ये 'चालान' क्या करे. 

बेटे विदेश, बेटियाँ ससुराल चल गयी,
सूने पड़े हुए है ये दालान क्या करे ! 

अग्नि 'उदर' की चूल्हा न घर का जला सकी,
'हाकिम', कि हो रहे है परेशान क्या करे. 

'मंसूर' दूर-दूर तलक जा के आ गया,
सब लोग ही मिले उसे अनजान क्या करे !


--mansoor ali hashmi 

Saturday, October 12, 2013

संभावनाएं……. Possibilities !






संभावनाएं……. 


हर क़दम पर गुनाह के इमकान,
'नेकियों' के भी है बहुत सामान.  

क़समें खाना हुआ बड़ा आसान,
थूंक देते है जैसे खाकर पान. 

कितना नज़दीक है ख़ुदा तेरा,
ढूँढता फिर रहा है, तू नादान !

चार अनासिर* से है वजूद तेरा,            *[तत्वों]
चार ही दिन का, तू भी है मेह्मान.

ख्वाहिशो का हुजूम, तू तनहा,
कम नहीं हो रहे तिरे अरमान.   

'साम्पर्दायिक' नहीं है 'बालीवुड',
'ह्रितिक' अकबर, अशोका बनते 'खान'.

मयक़दों में तो शौर है बरपा,

धर्मस्थल क्यों हो रहे वीरान ?

"फ़ैल 'फेलिन'* हो", ये दुआ लब पर,        *[Phailin Cyclone]        
डूब दरिया में जाए, ये तूफ़ान. 










बापू'* भगवान् भी, पति भी बने,          *[निराशाराम]
देख-सुन हो रहा हूँ मैं हैरान ! 

नर ही को मान बैठे 'नारायण'*,                *[साईं नारायण]
वो जो 'कामी' भी, धूर्त भी, शैतान! 

'बाप' ही  ने 'जड़ी' खिलायी थी,
'बेटा' उससे हुआ अधिक बलवान.



अब तो 'मुक्ति' खरीद ही लेंगे,


धर्म वालो ने खोल ली दूकान !



'सूद' , उपकार ऐसे बन जाता, 
ले के, करते जो दूसरो को दान !

पेट भरने को काफी 'बत्तीसा'*    
हुक्मरानों ने कर दिया फरमान। 
*[३२ रूपये/  ज़च्गी के वक़्त खिलाये जाने वाली पौष्टिक खुराक]

जाटो-मुस्लिम में  खिंच गयी तलवार,
कौन* चढ़ता है देखो अब परवान ?           *[कौनसी राजनितिक पार्टी] 

'फेसबुक' पर दिखे, मिले जब तो,
ईद से क़ब्ल ही हुए कुर्बान ! 

है 'दशहरा', दिवाली की आमद,
तान दो 'रावणों' पे फिर से बाण. 

पहले 'लिखने' से भी थे डरते लोग,
अब तो 'छपना' भी हो गया आसान।

बात पढ़ने-पढ़ाने की मत कर,
Paste कर काट के कोई अन्जान.

'हाश्मी', बस भी अब करो यारां,
पढ़ने वालो को मत करो हल्क़ान। 
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- mansoor ali hashmi 

Saturday, September 21, 2013

अबकि 'चुनाव' जीत के हम भी दिखाएँगे !








अबकि  'चुनाव' जीत के हम भी दिखाएँगे !

फिर लग रहा है काम में 'दंगे' ही आयेंगे,
अब सद-चरित्र ! भाव में बारह के जायेंगे। 

'सद भावना' से 'दान में, मिलती 'भूमि' अगर,
'संत भावना' ही से तो, उसे हम पचाएंगे। 

'त्रि नाड़ी शूल', जेल का एकांत हाए-हाए !
'पंचेढ़-बूटी' संग मेरी 'नीता' बुलाएंगे ?

यह भी तो 'राम-राज्य' है, पानी के भाव ! 'अन्न'    
सरकार दे रही है तो हम बैठ खायेंगे। 

'कौड़ी' के भाव मिल गयी, सत्ता में सुख तो है,
'ससुराली' है ज़मीन इसे बेच खायेंगे! 

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--mansoor ali hashmi 

Tuesday, August 27, 2013

डबल सिक्स [66 ]





डबल सिक्स [66 ]



मैं डॉलर के बराबर था , 'डबल छक्का'* बना डाला ,         *$ 1 = Rs. 66 

कभी चांदी का सिक्का था, मुझे 'कोयला' बना डाला। 

हमीं ने आदमी को संत, फिर 'भगवन' बना डाला ,
उसी ने 'संस्कारों' को ही मिटटी में मिला डाला  . 

दिखेगा आज* 'मंगल' भी फलक पर 'चाँद' के हमराह ,     *२७ अगस्त'१३ 
'चकोरो' ने सरे ही शाम से डेरा यहाँ डाला। 

मिली जो 'वोट' की ताक़त, उसी का सौदा कर डाला ,
कभी 'धर्मो' की खातिर तो कभी 'ज़र' में बदल डाला। 

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--Mansoor ali Hashmi