हिचकियाँ !
अजित वडनेरकर जी की आज की पोस्ट
से प्रभावित होकर, जो हिचकियाँ आ रही है उससे "आत्म-मंथन' को तो
प्रभावित होना ही था:-
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याद इतना कर रहा है कौन आज !
'हिचकियाँ ही हिचकियाँ' आती रही.
# 'हिचकिचाते' ,'सिमट' वो जाते थे,
फिर भी हम को बहुत वो भाते थे,
अब जो आकर पसर गए है वो,
देखिये हम 'सिमटते' जाते है.
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# ले के 'हिचकी' वो सब 'डकार' गया
गीला-सूखा सभी उतार गया,
'हाथ धोकर' ही जैसे आया था !
हाथ फिर धोये और पधार गया !!
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# 'बेहिचक' होके वो लताड़ गया,
उसका खाया-पिया बिगाड़ गया,
सर पे टोपी लगी थी अन्ना की,
'लोक्पाली' से डर 'लबाड़' गया.
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# उसने पूछी है बात दिल की मेरी,
मैं 'हिचकते' रहा; कहूँ, न कहूँ ?
एक 'हिचकोला' खाके बस जो रुकी,
वो उतरली; मैं, अब रुकू के चलू ?
# बिसरो की जो याद दिलादे 'हिचकी' है,
'श्वास' का जो व्यवधान बतादे हिचकी है,
बातो से तो दावा होश का करता है,
चढ़ी है कितनी इसका पता दे ,हिचकी है.
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-मंसूर अली हाश्मी