"चोक्के"
आज के 'दैनिक भास्कर' , समाचार पत्र की सुर्खी से प्रेरित;-
'अम्मा' हो मेहरबान तो 'अंबानी' को राहत.
'प्रणब' हो कि 'पी.सी' कोई 'दिग्गी' हो कि 'गहलोत',
एक शर्ते 'वफादारी' है बस, पाने को 'चाहत'.
--------------------------------------------------------
घोटाले बढ़े देश में, और फैली है दहशत,
'बाबा' भी निकल आये है अब छोड़ के 'कसरत',
अब एक नया 'गांधी' भी बेदार हुआ है,
पाले हुए कितने ही है 'पी. एम्.' की हसरत.
----------------------------------------------------
अब देखो बदलता है... कब ऊंट ये करवट !
'चारे'* की तो रहती है, हरएक को ही ज़रूरत, *सत्ता सुख
कौशिश में लगे है कि उलट फेर तो हो जाए,
उम्मीद के हो जाएगी हरकत से ही बरकत.
----------------------------------------------------------
====================================
अब कूँए को उल्टा के बना डाला है टंकी,
रस्सी की ज़रूरत नहीं, होते नहीं पनघट,
गगरी, न डगर सूनी, न गौरी की मटक है,
'बाइक' पे भटकते फिरे बेचारे, ये नटखट.
---------------------------------------------------------
-मंसूर अली हाश्मी
3 comments:
वाह! वाह!! हाशमीजी। तबीयत हरी हो गई। दुशाले में लपेटकर मारना इसी को कहते हैं। आपको हमारी उम्र लगे।
वाह जी..क्या खबर ली..आधी क्लीन चिट...:)
पनघट की कमी तो वाकई हो गई है।
Post a Comment