लिखा है कुछ, पढ़त क्या है !
उलट हक़ तो पुलट क्या है !
भले दिन की उम्मीदें है ?
सितारों की जुगत क्या है ??
नतीजे 'फिक्स' होते है
खिलाड़ी क्या, रमत क्या है !
फुगावा* है उम्मीदों का *inflation
ये घाटे का बजट क्या है।
धुंधलका अपनी आँखों का
ये 'ओज़ोनी' परत क्या है
'हमीं' पर्यावरण अपना
खुद अपने से लड़त क्या है ?
'नहीं' में से तो उपजा है
भरम है! ये जगत क्या है।
--मंसूर अली हाश्मी
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