राजनीति में सभी खपने लगे !
भक्त को भगवन बना जपने लगे
खुद है भगवन जाप फिर रटने लगे
'संस्कार' अंतिम ही उसको जानिये
'अच्छी' बातें 'गंदी' जब लगने लगे
कर्ण-प्रिय वाणी थी और अमृत वचन
अब तो हर-हर शब्द में हगने लगे
संत में आसक्तियां जगने लगी
आस्थाओं के दिये बुझने लगे
मांगे बिन ही जब मुरादें मिल गयी !
'साँई' उनको ग़ैर अब लगने लगे
'शून्य' से निर्मित हुई है कायनात
खोज फिर उस 'शून्य' की करने लगे !
--मंसूर अली हाश्मी
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