आस हम भी लगाए बैठे है !
गालियाँ बदमज़ाक़ देते है
ख़ुश्मज़ाक़ हाथो-हाथ लेते है।
चित्र, सुन्दर लगा के* दाद तलब [ *FB पर ]
खूब 'Like' जुटाएं बैठे है।
'मर्दुए' भी ज़नाना वेषों में
मजनूओं को रिझाए रहते है।
'फेंकने' वाले, इत्मीनान से है
'झेलू' अब तक उसे लपेटे है !
'चाय' की अब दूकान बंद हुई
खाली कप है; फ़ूटी प्लेटें है।
{ग़ज़ल का एक शेर :
हाथ उठा कर जो ली है अंगड़ाई
कितने दिल उसने यूं समेटे है !}
'पाँव-भाजी' है 'आम' लोग अब तो
'हाशमी' भी 'चने-बटेटे' है !
-- मंसूर अली हाशमी
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