ये 'नमी' 'शब्' की भी मासूम है आँसू की तरह
अधखिले फूल पे शबनम की ये ठहरी हुई बूँद,
देखे ! गिरती है कि सूरज की तपिश से उड़कर,
पहुँच आकाश में; करती है सफ़र फिर से शुरू
इक नई भोर में कोहरे पे सवारी कर के
इक नए फूल पे गिरने की तमन्ना लेकर
किसी आँगन में जहां ..........
शब् की जागी हुई दोशीज़ा* - खड़ी , अलसाई *[सुन्दर युवती ]
जिसके गालो पे भी बूंदे दिखी शबनम की तरह
अधखिले फूल के सन्मुख थी वो फरयाद कुना।
.... ओस की बूँद का उस फूल पे आकर गिरना
और दोशीज़ा का फिर पलकों से अपनी चुनना !
महवे हैरत हुआ दो बूँदो को मिलते देखा !!
दोनों क़तरों में समाया हुआ दरया देखा !!!
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