Monday, September 12, 2011

SILENT CRY


जब भी बोला है सच ही बोला है!

मुंह नहीं उसने अपना खोला है,

उसका चुप रहना ही तो ‘बोला’ है.

दर्द दुनिया का भर लिया दिल में,

हाथ में उसके खाली झोला है.

खाताधारी ‘Swiss’ का बन बैठा,

रत्ती,माशा कभी था, ‘तोला’ है.

आबे ज़मज़म न गंगा जल की तलब,

हाथ में अब तो कोका कोला है.

‘वो’ किसी और को, कोई ‘उसको’,

ठोंकता है सलाम- ‘ठोला’ है. 

मुफ्त का माल, बे रहम हो जा,

फ़िक्र क्या करना? हाजमोला है!

क्यों रसन, दार पर सजी फिर से,

सच ये फिर आज कौन बोला है ?

दोनों जानिब नज़र वो आता है,

झूलता रहता है हिंडोला है !

इन्किलाब अब तो यूं भी आते है,

बन गयी जब भी भीड़ ‘टोला’ है.


 --mansoor ali hashmi 

4 comments:

विष्णु बैरागी said...

कायम तो बस बेइमानी ही है
जब भी डोला, ईमान ही डोला है

खतरा मोल लेता है ये सिरफिरा
जब भी बोला, मन्‍सूर ही बोला है

दिनेशराय द्विवेदी said...

मंसूर तो खूब बोलता है,
इंतजार रहता है, कब मुहँ खोलता है?

shabbir said...

mansoor uncle jab bhi bolte hai,
sab ki pol kholte hai..........

shabbir said...

mansooor uncle jab bhi bolte hai,
sab ki pol kholte hai...........