जब भी बोला है सच ही बोला है!
मुंह नहीं उसने अपना खोला है,
उसका चुप रहना ही तो ‘बोला’ है.
दर्द दुनिया का भर लिया दिल में,
हाथ में उसके खाली झोला है.
खाताधारी ‘Swiss’ का बन बैठा,
रत्ती,माशा कभी था, ‘तोला’ है.
आबे ज़मज़म न गंगा जल की तलब,
हाथ में अब तो कोका कोला है.
‘वो’ किसी और को, कोई ‘उसको’,
ठोंकता है सलाम- ‘ठोला’ है.
मुफ्त का माल, बे रहम हो जा,
फ़िक्र क्या करना? हाजमोला है!
क्यों रसन, दार पर सजी फिर से,
सच ये फिर आज कौन बोला है ?
दोनों जानिब नज़र वो आता है,
झूलता रहता है हिंडोला है !
इन्किलाब अब तो यूं भी आते है,
बन गयी जब भी भीड़ ‘टोला’ है.
4 comments:
कायम तो बस बेइमानी ही है
जब भी डोला, ईमान ही डोला है
खतरा मोल लेता है ये सिरफिरा
जब भी बोला, मन्सूर ही बोला है
मंसूर तो खूब बोलता है,
इंतजार रहता है, कब मुहँ खोलता है?
mansoor uncle jab bhi bolte hai,
sab ki pol kholte hai..........
mansooor uncle jab bhi bolte hai,
sab ki pol kholte hai...........
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