क्यूँ चारो तरफ फैला है भरम?
'अन्ना' पे करम, 'बाबा' पे सितम ,
'अम्मा' इस तरह करना न ज़ुलम!
'पैसा' है सनम, 'योगा' से शरम,
'मन'* है तुझको कैसा ये भरम ? [*PM]
'भगवे' से हुआ ख़तरा पैदा,
'शलवार'* ने रखली 'उनकी' शरम. *[बाबा रामदेव]
रक्षा करना थी देश की जब,
'आँचल' को बना डाला परचम.
स्वागत करके लाये थे जिसे,
छोड़ा उसको हरि के द्वारम.
'सेवा' करना ही जिनका 'धरम'.
-- mansoor ali hashmi
11 comments:
कितने सुन्दर शब्द लिखे है, आपने,
वाह! आप का जवाब नहीं।
'भगवे से हुआ ख़तरा पैदा,
'शलवार' ने रखली 'उनकी' शरम.
:)
मंसूर अली साहेब आपने तो कमाल की गजल कही दाद तो कुबूल करें और आदाब भी...
Ye bhee khub kahi aapne.
अपनों पे करम, ओरों पे सितम
कुछ तो कर ले शर्म, कुछ तो कर ले शर्म।
बहुत सुंदर।
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बाबूजी, न लो इतने मज़े...
भ्रष्टाचार के इस सवाल की उपेक्षा क्यों?
बहुत बढिया।
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बाबूजी, न लो इतने मज़े...
भ्रष्टाचार के इस सवाल की उपेक्षा क्यों?
vah mansur bhai... bahut badi baat kah gaye ho..
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मंसूर अली जी ,
आपके पास नीर-क्षीर विभेदक बुद्धि है। आपको सरकार की कारस्तानी स्पष्ट दिख रही है। ये अम्मा किसी की नहीं । किसी को प्रेम नहीं करती । किसी के कष्ट से इन्हें सरोकार नहीं । बेटा भूखा है और अम्मा रोज़ डिनर करके चैन से सो रहीं हैं। धिक्कार है ऐसी सरकार पर , जिसे जनता के दुःख से सरोकार नहीं। सिर्फ अपने निजी स्वार्थ के लिए , चुनाव जीतने के लिए झूठे वादे करती है और बाद में सब भुला देती है। हम आम इंसान निराश होने के सिवा कुछ नहीं कर सकते।
इस उम्दा , भावपूर्ण रचना के लिए आभार एवं बधाई।
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इस शमा को जलाए रखें।
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हॉट मॉडल केली ब्रुक...
यहाँ खुदा है, वहाँ खुदा है...
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