Monday, May 30, 2011

Shining Age


कैसा ये ज़माना है !

गोरो को भगाया अब "काले"* को बुलाना है,           *[धन]
इस देश के बाहर भी इक अपना ख़ज़ाना है.

लिस्ट हमने भिजायी है, हम 'DRONE' नहीं करते ,
'कस्साबो' को हमने तो मेहमान बनाना है.

'फिफ्टी' या 'ट्वेंटी' हो ये टेस्ट [Taste!]  हमारा है,
पैसा हो जहां ज़्यादा,उस सिम्त ही जाना है.

ये भी तो सियासत है, सत्ता से जो दूरी हो,
'केटली' को गरम रखने '[सु] शमा' को जलाना है.

ये दौरे ज़नाना है, माया हो कि शीला हो,
ममता को ललिता को अब सर पे बिठाना है.

'बॉली' न यहाँ 'वुड' है,अफवाहों का झुरमुट है,
लैला की  ये बस्ती है, मजनूं का ठिकाना है.

घोटाले किये लेकिन, 'आदर्श' नहीं छोड़ा,
मकसद ये 'बुलंदी' पर, बस हमको तो जाना है.

निर्णय  ही 'अनिर्णय' है; इस वास्ते संशय है, 
ये कैसा ज़माना है! कैसा ये ज़माना है!!
-mansoor ali hashmi 

9 comments:

Udan Tashtari said...

ये कैसा ज़माना है! ...बस, यही समझ आ जाये तो समझो जग जीत लिया...क्या खूब रचा है आपने.

दिनेशराय द्विवेदी said...

कभी ये नया था अब पुराना सड़ता हुआ जमाना है।

Irfanuddin said...

बहुत सही फारमया़ हज़रत :))

Anonymous said...

Irfan Uddin ने आपके लिंक पर टिप्पणी की|
Irfan ने लिखा: ये दौरे ज़नाना है, 'माया' हो कि 'शीला' हो, 'ममता' को 'ललिता' को अब सर पे बिठाना है...... Loved it Mansoor Saheb....

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

आपने आज फिर लाजवाब कर दिया.
निर्णय ही 'अनिर्णय' है; इस वास्ते संशय है,
ये कैसा ज़माना है! कैसा ये ज़माना है!!

BrijmohanShrivastava said...

एक से बढ कर एक शानदार शेर हकीकत बयान करते हुये और तीक्ष्ण प्रहार करते हुये

वीना श्रीवास्तव said...

गोरो को भगाया अब "काले"* को बुलाना है,
इस देश के बाहर भी इक अपना ख़ज़ाना है

बहुत खूब...

उम्मतें said...

हमेशा की तरह धारदार !

upendra shukla said...

वह क्या कविता है!में आसा करता हू आप हम लोगो के लिए इसी तरह की कविता देते रहे! आप लोग मेरे ब्लॉग पर भी आये !मेरे ब्लॉग पर आने के लिए बस "यहाँ क्लिक करे" हा एक बात कमेंट्स जरुर दे !