अब........
'प्रदर्शन' ही रोज़ का अब मामूल हुआ.
'तलवारे' तो पहुँच गयी है म्यूजियम* में, [*अंग्रेजो की]
अब धर्मो का रक्षक याँ त्रिशूल हुआ.
धरम, दया की यारी अब तो टूट रही,
हिंसा से वह लड़ने में मशगूल हुआ.
रिश्वत से अब कम ही उलझन होती है,
ली, दे दी! जब सबब कोई माकूल हुआ.
--mansoorali hashmi
7 comments:
धरम, दया की यारी अब तो टूट रही,
हिंसा से वह लड़ने में मशगूल हुआ.
रिश्वत से अब कम ही उलझन होती है,
ली, दे दी! जब सबब कोई माकूल हुआ.
बहुत सही कहा.
हाशमी साहब ,
आपके ख्यालात की धार बड़ी तगड़ी है !
एन उसी जगह पर वार जहां नासूर हैं !
जितनी भी तारीफ करूं कम है !
तल्ख़ सच्चाइयाँ पिरोयीं हैं आपने अपनी ग़ज़ल में...दाद कबूल करें...
नीरज
पर-दर्शन' को एब समझते थे पहले,
'प्रदर्शन' ही रोज़ का अब मामूल हुआ.
....aisa hi jagah dekhne ko mil raha hai...
..bahut khoob!
रिश्वत से अब कम ही उलझन होती है,
ली, दे दी! जब सबब कोई माकूल हुआ.
-क्या बात है..सच सच बयानी!!
आप की सोच को प्रणाम है!
बहुत कम लोग इतना खरा लिखते हैं।
यथार्थ को बयां करती रचना ,बधाई ।
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