Wednesday, March 24, 2010

क्रिकेट की गिरगिट

आदरणीय दिनेश रायजी,
सादर नमस्कार,
महेंद्र नेह जी कि शानदार रचना पर एक गुस्ताखाना हज़ल हो गयी है. दरअस्ल आई.पी.एल  मेच देखते-देखते यह पढ़ना-लिखना कार्यरूप ले रहा था.
आपको इस बात का इख्तियार देता हूँ कि इस सठियाई हुई रचना को सिरे से ख़ारिज करदे, edit  करदे या approve करदे. आपका जवाब मिलने पर यह
पब्लिश होगी या रद्द.
क्रिकेट की  गिरगिट
 :
चंचल किशोरियां है,आँखों में मस्तियाँ है,
हाथो में फूल नकली ,छतियाँ धड़कतियां है.

मैदान में खिलाड़ी,दर्शक से खेलती ये ,
क्रिकेट पीछे-पीछे , अगली ये पंक्तियाँ है.

क्रिकेट के गणित से लेना न कुछ है देना,
चोक्को  को लात देकर ,छक्के पकड़तियां है.

सौष्ठव शरीर होवे, मैदान इसलिए है,

मन रंजनो कि खातिर कितनी उछल्तिया है,
 
 उत्साह वर्धनी है, कुछ है कि कामिनी है,
दुस्साहसी भी इनमे, किसकी ये गलतियाँ है.

-mansoorali hashmi
http://aatm-manthan.com



[अरे! बहुत अच्छी बनी है। आप इसे प्रकाशित कीजिए।]
 -दिनेशराय द्विवेदी:{note: आपकी मंजूरी भी public  करदी है- आपको सठियाने में भी ज्यादा साल नहीं बचे!}

2 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

सठियाने का साल से कोई मतलब थोड़े ही है। कुछ लोग जल्दी भी सठिया जाते हैं। और आप जैसे साठोत्तर होने पर भी नहीं।

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

ऐसी फरफराती पंक्तियाँ तो सिर्फ आप ही रच सकते हैं.

उधर क्रिकेट में कमाल हो रहा है तो आप इधर हज़ल में कमाल कर रहे हैं.