[With Sallu it is sometimes difficult to keep his shirt on....T. O. I./21.09.09]
Shirt [शर्त?]
पहन लूँ या निकालूं फर्क क्या है,
दिखाऊँ या छुपाऊं हर्ज क्या है,
मैं हर सूरत बिकाऊं शर्त? क्या है,
बताएं कोई इसमें तर्क क्या है?
जो बाहर हूँ, मैं अन्दर से वही हूँ,
मगर Under की दुनिया से नही हूँ,
गलत कितना हूँ मैं कितना सही हूँ,
''दसो-का-दम'' हूँ मैं बेदम नही हूँ.
मिरी हीरोईनों में तो हया है,
लिबासों में सजी वो पुतलियाँ है,
नही गर एश तो में कैफ* में हूँ,
असिन, रानी है आयशा टाकिया है.
*खुमार
Tuesday, September 22, 2009
Saturday, September 19, 2009
Panch-Tantra
तंग होती दुनिया
जहाँ मेहमान भगवन बनके आता,
था हरएक का हरएक से कोई नाता,
जहाँ ,दिन रात होती थी दिवाली,
अंधेरे में ये अब क्यों खो गई है,
बहुत छोटी ये दुनिया हो गई है.
नई रस्मों की है अब वाह - वाही,
लगी है बनने माँ अब बिन ब्याही,
सफेदी को है खा बैठी स्याही,
बदरवा बिन भी रैना हो गई है
बहुत छोटी ये दुनिया हो गयी है.
फिज़ाओं में चमक थी रौशनी थी,
हवाओं में भी कैसी ताज़गी थी,
अमावस में चंदरमा खो गया है,
खिजाओं से क्या यारी हो गई है,
बहुत छोटी ये दुनिया हो गई है.
बदलती जा रही है चाल देखो,
लपेटे है शनि का जाल देखो,
गुरु लगता है अब पामाल देखो,
कभी केतु तो राहू से ठनी है,
बहुत छोटी ये दुनिया हो गयी है.
नगद, चीजों का बिकना रुक गया है,
चलन में जाली रुपया जुट गया है,
हमारा सब्र भी अब खुट गया है,
उधारी ही उधारी हो गई है.
बहुत छोटी ये दुनिया हो गई है.
परिंदों ने कमी की फासलों में ,
चरिंदे भी रुके है रास्तो में,
सितारे छुप गए है बादलो में ,
हवा भी लगती, जैसे थम गई है,
बहुत छोटी ये दुनिया हो गयी है.
शहर में हर कोई बीमार क्यों है,
मसीहा भी दिखे लाचार क्यों है,
रसायन भी बने हथियार क्यों है,
उलट गिनती शुरू क्या हो गई है?
बहुत छोटी ये दुनिया हो गई है.
खुलेगा पंचतंत्रों का गठन क्या?
छुटेगा पंच तत्वों का मिलन क्या?
गिरेगा इस धरा पर ये गगन क्या?
सितारों की यही तो आगही है!
बहुत छोटी ये दुनिया हो गई है.
-मंसूर अली हाशमी
जहाँ मेहमान भगवन बनके आता,
था हरएक का हरएक से कोई नाता,
जहाँ ,दिन रात होती थी दिवाली,
अंधेरे में ये अब क्यों खो गई है,
बहुत छोटी ये दुनिया हो गई है.
नई रस्मों की है अब वाह - वाही,
लगी है बनने माँ अब बिन ब्याही,
सफेदी को है खा बैठी स्याही,
बदरवा बिन भी रैना हो गई है
बहुत छोटी ये दुनिया हो गयी है.
फिज़ाओं में चमक थी रौशनी थी,
हवाओं में भी कैसी ताज़गी थी,
अमावस में चंदरमा खो गया है,
खिजाओं से क्या यारी हो गई है,
बहुत छोटी ये दुनिया हो गई है.
बदलती जा रही है चाल देखो,
लपेटे है शनि का जाल देखो,
गुरु लगता है अब पामाल देखो,
कभी केतु तो राहू से ठनी है,
बहुत छोटी ये दुनिया हो गयी है.
नगद, चीजों का बिकना रुक गया है,
चलन में जाली रुपया जुट गया है,
हमारा सब्र भी अब खुट गया है,
उधारी ही उधारी हो गई है.
बहुत छोटी ये दुनिया हो गई है.
परिंदों ने कमी की फासलों में ,
चरिंदे भी रुके है रास्तो में,
सितारे छुप गए है बादलो में ,
हवा भी लगती, जैसे थम गई है,
बहुत छोटी ये दुनिया हो गयी है.
शहर में हर कोई बीमार क्यों है,
मसीहा भी दिखे लाचार क्यों है,
रसायन भी बने हथियार क्यों है,
उलट गिनती शुरू क्या हो गई है?
बहुत छोटी ये दुनिया हो गई है.
खुलेगा पंचतंत्रों का गठन क्या?
छुटेगा पंच तत्वों का मिलन क्या?
गिरेगा इस धरा पर ये गगन क्या?
सितारों की यही तो आगही है!
बहुत छोटी ये दुनिया हो गई है.
-मंसूर अली हाशमी
Friday, September 18, 2009
तो क्या?/So What?
तो क्या?
भीड़ से जो लोग* डरते है,
भेड़(cattle) से हो उन्हें परहेज़ तो क्या?
सुख वो सत्ता का छोड़ दे कैसे,
शूल की भी भले हो सेज़ तो क्या?
अपनी कुर्सी तो हम न छोड़ेंगे,
छिन जो जाए हमारी मेज़ तो क्या?
क्या कमी है यहाँ 'फिजाओं'* की, [*चाँद की प्रेमिका]
मिल न पाया अगर दहेज़ तो क्या?
अपनी रफ़्तार हम न बदलेंगे,
है ज़माना अगर ये तेज़ तो क्या?
फ़िक्र ozone की करे क्यों हम,
हम न होंगे! बढ़े ये Rays तो क्या !
एक लड़का भी चाहिए हमको,
बहू को फिर चढ़े है Days तो क्या?
*मगरूर साहब
-मंसूर अली हाशमी
भीड़ से जो लोग* डरते है,
भेड़(cattle) से हो उन्हें परहेज़ तो क्या?
सुख वो सत्ता का छोड़ दे कैसे,
शूल की भी भले हो सेज़ तो क्या?
अपनी कुर्सी तो हम न छोड़ेंगे,
छिन जो जाए हमारी मेज़ तो क्या?
क्या कमी है यहाँ 'फिजाओं'* की, [*चाँद की प्रेमिका]
मिल न पाया अगर दहेज़ तो क्या?
अपनी रफ़्तार हम न बदलेंगे,
है ज़माना अगर ये तेज़ तो क्या?
फ़िक्र ozone की करे क्यों हम,
हम न होंगे! बढ़े ये Rays तो क्या !
एक लड़का भी चाहिए हमको,
बहू को फिर चढ़े है Days तो क्या?
*मगरूर साहब
-मंसूर अली हाशमी
Lover/माशूक
माशूक (III)
[नोट:- Interview की पहली दो कड़ी अवश्य पढ़े Scrolling down... :
"इश्क'' और ''आशिक'' के बाद संशोधित "माशूक" [प्रेमिका] इस सिलसिले की अन्तिम कड़ी पेशहै:-
ब्लोगरी [उर्फ़ पतंग]:- "तमे वापस आवी गया काका [uncle]? मुझे देखते ही वह सहसा अपनी घर की भाषा में बोल पड़ी।
म.ह:- कुछ प्रश्न बच गए है।
पतंग:= पूछो but ...
m.h.:- ....no personal questions please., मैंने उसका वाक्य पूरा कर दिया।
पतंग:- ..तो आप उससे मिल आए?
म.ह।:- इसी लिए यहाँ आना पड़ा कि तुम्हारे blog titles भी तो जान लूँ ।
पतंग:- interesting, संयोग से मेरा हर टाइटल या तो उनके टाइटल का byeproduct है या outcome है।
म.ह:- जैसे कि ?
पतंग:- सबसे पहले तो मैंने उसके 'दिल' पर 'धड़कन' दे डाली,फिर उसके 'कान' ब्लॉग पर 'शौर' मचा डाला
म .ह:- वह! क्या बात है। तुम्हारा हिन्दी साहित्य में दिलचस्पी का प्रेरक?
पतंग:- मेरे घर में हिन्दी की सभी मैगजीन आती है, उसमे जो तलाश करो मिल जाता है।
म.ह। :- और कोई विशेष ब्लॉग?
पतंग:- उसके 'होंठ ' पर मेरा 'kiss' तो super hit गया, एक इंग्लिश couple की फोटो भी छाप
दी थी support में।
म.ह।:- आगे क्या इरादा है?
पतंग:- उसके forth coming ' गला' के लिए मेरी आवाज़ लगभग तैयार है, आज रिलीज़ भी कर दूंगी और 'कमर' के लिए 'लचक' की study कर रही हूँ ।
म.ह। :- यानि आज-कल पढ़ाई -लिखाई सब बंद?
पतंग:- नही बल्कि exam की copy में यह सब लिख डालो तो और ज़्यादा marks आते है, १-२ supplimentry copy भी जोड़ना पड़ती है।
म.ह:- कोई मुश्किल तो नही होती 'उनके' हर ब्लॉग का जवाब देने में?
पतंग:- होती है ना! उनकी 'आँखे' के लिए मेरा 'आंसू' निकल ही नही पा रहा। मैं तो हँसते-हंसाते रहती हूँ । काश! मैंने एकता कपूर के सीरियल देखे होते, सुना है वह तो आंसुओं का खजाना है?
म.ह। :- कोई रोचक प्रसंग ?
पतंग:- बहुत ही रोचक, शायद प्रक्रति मेरा इस मामले में साथ दे रही है।
म.ह।:- किस मामले में?
पतंग:- दो ब्लोग्स वो कभी भी नही लिख पाएंगे, नही तो मेरी तो हालत ही ख़राब हो जाती!
म.ह।:- कौन- कौन से ?
पतंग:- एक तो वही भावना वाली 'नाक', अगर सचित्र लिखता तो...oh!shit..... मुझे उसका bye product देना पड़ता। कैसा असाहित्यिक कृत्य....भगवान ने बचा लिया।
म.ह। :- और दूसरा?
पतंग:- kidney वाला.....और फ़िर उसका bye-product , oh God! क्या करती?
म.ह:- और तुमने अपना नाम क्यो नही बताया 'उसे'?
पतंग:- बताया है मगर पहेली में? कि " मैं तुम्हारे नाम का bye प्रोडक्ट हूँ , उसका 'स्त्रीलिंग हूँ। उसको "सुचित्रा" का विचार ही नही आ रहा है, बुद्धू कही का!। अपने सिस्टम सॉफ्टवेअर ट्रांसलेटर में "स्त्रीलिंग" शब्द तलाश लिया तो उसने न जाने क्या बता दिया कि उसको दिन भर हिचकियाँ [hi-cup] ही आती रही, कई लीटर पानी पीने बाद भी, तब से उसने नाम पूछना ही छोड़ दिया है।
म.ह:-'आवाज़' का ट्रेलर नही सुनाओगी ?
पतंग: हाज़िर है.....
"हवा के 'दौश' पे होकर सवार चलती है,
जुदा हुई जो ये लब * से तो फ़िर न मिलती है"
म.ह: पतंग तुम्हारी उड़ान तो अच्छी रही, अब मैं जुदा सॉरी विदा होता हूँ , goodluck , all the best.
*कन्धा , * होंठ
-मंसूर अली हाश्मी.
[नोट:- Interview की पहली दो कड़ी अवश्य पढ़े Scrolling down... :
"इश्क'' और ''आशिक'' के बाद संशोधित "माशूक" [प्रेमिका] इस सिलसिले की अन्तिम कड़ी पेशहै:-
ब्लोगरी [उर्फ़ पतंग]:- "तमे वापस आवी गया काका [uncle]? मुझे देखते ही वह सहसा अपनी घर की भाषा में बोल पड़ी।
म.ह:- कुछ प्रश्न बच गए है।
पतंग:= पूछो but ...
m.h.:- ....no personal questions please., मैंने उसका वाक्य पूरा कर दिया।
पतंग:- ..तो आप उससे मिल आए?
म.ह।:- इसी लिए यहाँ आना पड़ा कि तुम्हारे blog titles भी तो जान लूँ ।
पतंग:- interesting, संयोग से मेरा हर टाइटल या तो उनके टाइटल का byeproduct है या outcome है।
म.ह:- जैसे कि ?
पतंग:- सबसे पहले तो मैंने उसके 'दिल' पर 'धड़कन' दे डाली,फिर उसके 'कान' ब्लॉग पर 'शौर' मचा डाला
म .ह:- वह! क्या बात है। तुम्हारा हिन्दी साहित्य में दिलचस्पी का प्रेरक?
पतंग:- मेरे घर में हिन्दी की सभी मैगजीन आती है, उसमे जो तलाश करो मिल जाता है।
म.ह। :- और कोई विशेष ब्लॉग?
पतंग:- उसके 'होंठ ' पर मेरा 'kiss' तो super hit गया, एक इंग्लिश couple की फोटो भी छाप
दी थी support में।
म.ह।:- आगे क्या इरादा है?
पतंग:- उसके forth coming ' गला' के लिए मेरी आवाज़ लगभग तैयार है, आज रिलीज़ भी कर दूंगी और 'कमर' के लिए 'लचक' की study कर रही हूँ ।
म.ह। :- यानि आज-कल पढ़ाई -लिखाई सब बंद?
पतंग:- नही बल्कि exam की copy में यह सब लिख डालो तो और ज़्यादा marks आते है, १-२ supplimentry copy भी जोड़ना पड़ती है।
म.ह:- कोई मुश्किल तो नही होती 'उनके' हर ब्लॉग का जवाब देने में?
पतंग:- होती है ना! उनकी 'आँखे' के लिए मेरा 'आंसू' निकल ही नही पा रहा। मैं तो हँसते-हंसाते रहती हूँ । काश! मैंने एकता कपूर के सीरियल देखे होते, सुना है वह तो आंसुओं का खजाना है?
म.ह। :- कोई रोचक प्रसंग ?
पतंग:- बहुत ही रोचक, शायद प्रक्रति मेरा इस मामले में साथ दे रही है।
म.ह।:- किस मामले में?
पतंग:- दो ब्लोग्स वो कभी भी नही लिख पाएंगे, नही तो मेरी तो हालत ही ख़राब हो जाती!
म.ह।:- कौन- कौन से ?
पतंग:- एक तो वही भावना वाली 'नाक', अगर सचित्र लिखता तो...oh!shit..... मुझे उसका bye product देना पड़ता। कैसा असाहित्यिक कृत्य....भगवान ने बचा लिया।
म.ह। :- और दूसरा?
पतंग:- kidney वाला.....और फ़िर उसका bye-product , oh God! क्या करती?
म.ह:- और तुमने अपना नाम क्यो नही बताया 'उसे'?
पतंग:- बताया है मगर पहेली में? कि " मैं तुम्हारे नाम का bye प्रोडक्ट हूँ , उसका 'स्त्रीलिंग हूँ। उसको "सुचित्रा" का विचार ही नही आ रहा है, बुद्धू कही का!। अपने सिस्टम सॉफ्टवेअर ट्रांसलेटर में "स्त्रीलिंग" शब्द तलाश लिया तो उसने न जाने क्या बता दिया कि उसको दिन भर हिचकियाँ [hi-cup] ही आती रही, कई लीटर पानी पीने बाद भी, तब से उसने नाम पूछना ही छोड़ दिया है।
म.ह:-'आवाज़' का ट्रेलर नही सुनाओगी ?
पतंग: हाज़िर है.....
"हवा के 'दौश' पे होकर सवार चलती है,
जुदा हुई जो ये लब * से तो फ़िर न मिलती है"
म.ह: पतंग तुम्हारी उड़ान तो अच्छी रही, अब मैं जुदा सॉरी विदा होता हूँ , goodluck , all the best.
*कन्धा , * होंठ
-मंसूर अली हाश्मी.
litrature, politics, humourous
दिल - गुर्दे पर ब्लॉग
Monday, September 14, 2009
Blogging-4
बलागियात-4
[पूर्व प्रकशित - संपादित/संवर्धित , Blogging लेबल पर अन्य रचनाओं के लिए:-
visit .... http://mansooralihashmi.blogspot.com/search/label/Blogging
टेक्नीकल ब्लॉग बनते है,
मेकेनिकल ब्लॉग बनते है,
पॉलिटिकल ब्लॉग बनते है,
हिस्तरिकल ब्लॉग बनते है.
टेक्निक को सरल बनाता ब्लॉग,
कागजी भी मशीन चलाता ब्लॉग,
झूठ-सच को उलट-पलट करता,
'इति' को 'हास' [य] में बदलता ब्लॉग।
सच का पैमाना ले के बैठेंगे,
झूठ को बर्फ से भी तोलेंगे,
छोड़ कर हम तो north-south को,
सिर्फ़ अपनी ही पोल [pole] खोलेंगे।
'न्याय'* का दम तो हम भी भरते है,
' दाल-रोटी' से प्यार करते है,
'भडास' हम भी निकाल ही लेंगे,
इसी पर्यावरण में पलते है।
वो जो 'छींटे' उड़ा रहा है कहीं,
हमको तकनीक भी सिखाता है,
और 'तकनीक दृष्टा' एक जनाब,
इक ग़ज़ल रोज़ ही सुनाता है.
बैठने से ज़्यादा उड़ता है,
क्या गज़ब तश्तरी पे करता है.
Nostalgia का हो के शिकार,
इन दिनों खूब आह भरता है.
गौ के एक स्वामी भी है यहाँ,
पुस्तकों को भी अब तो पाले है.
धूम उनकी ग़ज़ल की रहती है,
उनके उस्ताद भी निराले है.
एक शब्दों के जादूगर भी है,
नाम और काम से वो 'कर' भी है.
'ताऊ' है, 'भाऊ' और 'सीमा' है ,
एक ब्लॉगर जी चिपलूनकर भी है.
बादलों से भी झांकता प्रकाश,
राज़ बतलाती रजिया आपा है ,
दत्त जी झान बाँटते हरदम,
पूरी संगीतमय संगीता है.
वाणी होती नशर ब्लागों की,
चिट्ठो से है भरा जगत सारा,
सेवा भाषा की सब ही करते है,
जो न टिप्याया वह गया मारा.
कुछ विषय का यहाँ नही टौटा
जो लुढ़क जाए बस वही लोटा,
Dust Bin ही नही तो डर कैसा,
चल जो निकला नही रहा खोटा.
आओ बैठे , ज़रा सा गौर करे,
पहले हम ख़ुद को ही तो bore करे,
छप ही जाएगा नाम चित्र सहित,
पीछे चिल्लाये कोई शोर करे!
नर को नारी बनादो चलता है,
बिल को खाई बतादो चलता है,
तिल से हम ताड़ तो बनाते है,
राई होवे पहाड़ चलता है।
-मंसूर अली हाश्मी
[नोट:. inverted coma के शब्द एवम विभिन्न रंग ब्लॉग टाइटल/ब्लोगर्स को इंगित करते हुए है../*तीसरा खंबा ]
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टेक्नीकल ब्लॉग बनते है,
मेकेनिकल ब्लॉग बनते है,
पॉलिटिकल ब्लॉग बनते है,
हिस्तरिकल ब्लॉग बनते है.
टेक्निक को सरल बनाता ब्लॉग,
कागजी भी मशीन चलाता ब्लॉग,
झूठ-सच को उलट-पलट करता,
'इति' को 'हास' [य] में बदलता ब्लॉग।
सच का पैमाना ले के बैठेंगे,
झूठ को बर्फ से भी तोलेंगे,
छोड़ कर हम तो north-south को,
सिर्फ़ अपनी ही पोल [pole] खोलेंगे।
'न्याय'* का दम तो हम भी भरते है,
' दाल-रोटी' से प्यार करते है,
'भडास' हम भी निकाल ही लेंगे,
इसी पर्यावरण में पलते है।
वो जो 'छींटे' उड़ा रहा है कहीं,
हमको तकनीक भी सिखाता है,
और 'तकनीक दृष्टा' एक जनाब,
इक ग़ज़ल रोज़ ही सुनाता है.
बैठने से ज़्यादा उड़ता है,
क्या गज़ब तश्तरी पे करता है.
Nostalgia का हो के शिकार,
इन दिनों खूब आह भरता है.
गौ के एक स्वामी भी है यहाँ,
पुस्तकों को भी अब तो पाले है.
धूम उनकी ग़ज़ल की रहती है,
उनके उस्ताद भी निराले है.
एक शब्दों के जादूगर भी है,
नाम और काम से वो 'कर' भी है.
'ताऊ' है, 'भाऊ' और 'सीमा' है ,
एक ब्लॉगर जी चिपलूनकर भी है.
बादलों से भी झांकता प्रकाश,
राज़ बतलाती रजिया आपा है ,
दत्त जी झान बाँटते हरदम,
पूरी संगीतमय संगीता है.
वाणी होती नशर ब्लागों की,
चिट्ठो से है भरा जगत सारा,
सेवा भाषा की सब ही करते है,
जो न टिप्याया वह गया मारा.
कुछ विषय का यहाँ नही टौटा
जो लुढ़क जाए बस वही लोटा,
Dust Bin ही नही तो डर कैसा,
चल जो निकला नही रहा खोटा.
आओ बैठे , ज़रा सा गौर करे,
पहले हम ख़ुद को ही तो bore करे,
छप ही जाएगा नाम चित्र सहित,
पीछे चिल्लाये कोई शोर करे!
नर को नारी बनादो चलता है,
बिल को खाई बतादो चलता है,
तिल से हम ताड़ तो बनाते है,
राई होवे पहाड़ चलता है।
-मंसूर अली हाश्मी
[नोट:. inverted coma के शब्द एवम विभिन्न रंग ब्लॉग टाइटल/ब्लोगर्स को इंगित करते हुए है../*तीसरा खंबा ]
Friday, September 11, 2009
Observation.....
देखा है...
उनका चेहरा उदास देखा है,
ज़ख्म इक दिल के पास देखा है।
बात दिल की जुबां पे ले आए,
उनको यूँ बेनकाब देखा है।
हो गुलिस्ताँ की खैर शाखों पर,
उल्लूओं का निवास देखा है।
सीरियल सी है जिंदगी की किताब,
बनना बहुओं का सास देखा है।
क्या जला है पता नही चलता,
बस धुआँ आस-पास देखा है।
जिसको पाने में खो दिया ख़ुद को,
उसको अब ना-शनास * देखा है।
उनके रुख पर हिजाब * की मानिंद,
हमने लज्जा का वास देखा है .
देखते रह गए सभी उसको,
घास को अब जो बांस देखा है.
*अपरिचित , पर्दा
-मंसूर अली हाशमी
उनका चेहरा उदास देखा है,
ज़ख्म इक दिल के पास देखा है।
बात दिल की जुबां पे ले आए,
उनको यूँ बेनकाब देखा है।
हो गुलिस्ताँ की खैर शाखों पर,
उल्लूओं का निवास देखा है।
सीरियल सी है जिंदगी की किताब,
बनना बहुओं का सास देखा है।
क्या जला है पता नही चलता,
बस धुआँ आस-पास देखा है।
जिसको पाने में खो दिया ख़ुद को,
उसको अब ना-शनास * देखा है।
उनके रुख पर हिजाब * की मानिंद,
हमने लज्जा का वास देखा है .
देखते रह गए सभी उसको,
घास को अब जो बांस देखा है.
*अपरिचित , पर्दा
-मंसूर अली हाशमी
Thursday, September 10, 2009
Mine Nine-Nine
9 - 9 - NO!
9--९ सुनते दिन गुजरा था,
No--No सुनते रात गुज़र गई.
खैर यही की खैर से गुजरी,
पंडित जी की जेब भी भर गई.
रस्ता काट न पाई बिल्ली,
हम सहमे तो वह भी डर गई.
काम बहुत से निपटा डाले,
काम के दिन जब छुट्टी पड़ गई.
एक सदी तक जीना होगा,
जिनकी नैना ९ से लड़ गई.
टक्कर मार के भी पछताई,
NAINO आज ये किससे भिढ़ गई.
-नन्नूर ननी नान्मी
9--९ सुनते दिन गुजरा था,
No--No सुनते रात गुज़र गई.
खैर यही की खैर से गुजरी,
पंडित जी की जेब भी भर गई.
रस्ता काट न पाई बिल्ली,
हम सहमे तो वह भी डर गई.
काम बहुत से निपटा डाले,
काम के दिन जब छुट्टी पड़ गई.
एक सदी तक जीना होगा,
जिनकी नैना ९ से लड़ गई.
टक्कर मार के भी पछताई,
NAINO आज ये किससे भिढ़ गई.
-नन्नूर ननी नान्मी
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