अवमूल्यन
जो बे हुनर थे आज वो इज्ज़त म'आब* है,
अच्छे भलो का देखिये ख़ाना खराब है.
ताउम्र भागते रहे जिसकी तलाश में,
पाया ये बिल अखीर* के वो तो सराब* है.
संस्कार और शरीअते सिखलाने वालो के,
हाथो में हमने देखा कि उलटी किताब है.
जीरो पे है फुगावा निरख* आसमान पर,
उलटा है गर ज़माना तो उलटा हिसाब है.
सब्जेक्ट, ऑब्जेक्ट है; फिर कैसा इम्तिहाँ?
हैरान से खड़े ये सवाल-ओ-जवाब है.
*प्रतिष्ठित, अंत में, मृग-तृष्णा , दाम[मूल्य]
मंसूर अली हाशमी
Sunday, November 15, 2009
Saturday, November 14, 2009
नया पैमाना /Forbes- Power Measuring Machine!
नया पैमाना
अप-डेट* होके गुंडे पाए नया मुकाम,
दाऊद पूरबी तो, पश्चिम का है ओसाम[a].
सर्वेयरों* को मिलते अब रोज़ नए काम
बदनाम भी हुए तो होता है बड़ा नाम.
*Forbes' List
litrature, politics, humourous
Changing Values
Thursday, November 12, 2009
माय फूट!/ My Foot
माय फूट!
वो नहीं बोलता झूट,
वो नहीं बोलता झूट,
''अमची'' न बोला तो 'हूट'
माय फूट!
'आज़मी' को डाला कूट ,
किसको भली लगी करतूत?
माय फूट.
अस्मिता में डाली फूट,
कैसी मानुस में अब टूट,
माय फ़ुट.
चाहें देश ये जाए टूट,
दल को करना है मजबूत,
माय फूट.
नही पूरा हुआ [कर] नाटक,
केवल बदल गया है रूट,
माय फूट.
वे नहीं बोलते झूट,
खद्दर का पहने है सूट,
माय फूट!
उसने लिए करोड़ो लूट,
जिसको मिली ज़रा भी छूट,
माय फूट.
-मंसूर अली हाशमी
litrature, politics, humourous
Dirty Politics
Sunday, November 8, 2009
चटका/Comments!
चटके का झटका
वाणी मेरी पढ़के उसने आज एक चटका दिया,
वाणी मेरी पढ़के उसने आज एक चटका दिया,
अर्थ उनके शब्दों का में ढूंढ़ता ही रह गया,
वो लिखे कि- इतने सुन्दर,कितने सुन्दर आप है,
इस बुढापे में ये कितनी ज़ोर का झटका दिया.
अब ब्लागों पर लगी तस्वीर का मैं क्या करू,
छप गई; हटती नहीं मुझसे दुबारा क्या करू,
Mail पर भी तो वो आने लगे है आजकल,
थोड़ा-थोड़ा मुझको भी भाने लगे है क्या करू?
नेट पर छपना भी अब तो छोड़ देना चाहिए,
रिश्ता-ए-कागज़ कलम फिर जोड़ देना चाहिए,
नेट के रिश्तो से डर लगने लगा है आजकल,
टिप-टिपाकर pass है ;अब 'मोड़' देना चाहिए.
-मंसूर अली हाशमी
litrature, politics, humourous
self searching
Saturday, November 7, 2009
आत्म-प्रसंशा /Self Appreciation
प्राप्ति ....कमेंट्स की!
पीठ खुजाने में दिक्कत है?
आओ! एसा कर लेते है...
मैं खुजलादूं आपकी...
बदले में , मेरी ;
तुम खुजला देना.
एक हाथ से मैंने दी तो,
दूजे से तुम लौटा देना.
कर से, कर [tax] ही की भाँति
अधिक दिया तो वापस [refund] लेना.
-मंसूर अली हाशमी
पीठ खुजाने में दिक्कत है?
आओ! एसा कर लेते है...
मैं खुजलादूं आपकी...
बदले में , मेरी ;
तुम खुजला देना.
एक हाथ से मैंने दी तो,
दूजे से तुम लौटा देना.
कर से, कर [tax] ही की भाँति
अधिक दिया तो वापस [refund] लेना.
-मंसूर अली हाशमी
litrature, politics, humourous
Between the Lines
Tuesday, November 3, 2009
Karnataka/scam/terror
कर- नाटक !
# अब दल का खुला है फाटक,
''कर'' लो जो भी हो ''नाटक''.
'येदू' जो कभी ''रब्बा'' थे,
अब क्यों लगते है जातक.
# धन ढूंढ़ता राजा को पहले,
अब ''राजा'' को धन की चाहत,
पैकेज बने तो सत्ता में,
बैठो को मिलती है राहत.
# आतंक तलवार दो-धारी,
दुश्मन से कैसी यारी,
अब कर ली है तैयारी,
माता हम तुझ पे वारी
-मंसूर अली हाशमी
litrature, politics, humourous
Dirty Politics
Monday, October 12, 2009
This Year
समझौता
वातावरण में शोर न पैदा करेंगे हम,
दिल के दीये जला के उजाला करेंगे हम.
फोड़ा पटाखा,फहरा पताका है चाँद पर,
दीपावली वही पे मनाया करेंगे हम.
कुर्बानियां तो ईद की करते है बार-बार,
खुद को भी अपने देश पे कुर्बां करेंगे हम.
पटरी से रेल उतर गई, इंजन बदल गया,
भैय्या! कुछ-एक बरस तो अब चारा चरेंगे हम.
'छठ' हम मना न पायेंगे दरया* में अबकी बार,
चौपाटी पर दुकाँ तो लगाया करेंगे हम.
९ के मिलन के साल में नैनो नही मिली,
नयनो में उनको अपनी बिठाया करेंगे हम.
*समुन्द्र
-मंसूर अली हाशमी
वातावरण में शोर न पैदा करेंगे हम,
दिल के दीये जला के उजाला करेंगे हम.
फोड़ा पटाखा,फहरा पताका है चाँद पर,
दीपावली वही पे मनाया करेंगे हम.
कुर्बानियां तो ईद की करते है बार-बार,
खुद को भी अपने देश पे कुर्बां करेंगे हम.
पटरी से रेल उतर गई, इंजन बदल गया,
भैय्या! कुछ-एक बरस तो अब चारा चरेंगे हम.
'छठ' हम मना न पायेंगे दरया* में अबकी बार,
चौपाटी पर दुकाँ तो लगाया करेंगे हम.
९ के मिलन के साल में नैनो नही मिली,
नयनो में उनको अपनी बिठाया करेंगे हम.
*समुन्द्र
-मंसूर अली हाशमी
Sunday, October 11, 2009
This Time
अबकी बार ......
'नो बोल' सा लगे है ये नोबल तो अबकी बार,
मंदी के है शिकार धरोहर* भी अबकी बार.
फिल्मों पे इस तरह पड़ी मंदी की देखो मार,
बनियाँ उतर चुका था गयी शर्ट अबकी बार.
कहते है अब करेंगे नमस्ते वो दूर से,
स्वाईन से बच गए, हुआ डेंगू है अबकी बार.
जिन्ना को याद करके तिजोरी भरी कहीं!
सूखा कहीं रहा कहीं सैलाब अबकी बार.
है राष्ट्र से बड़ा* वो जहाँ पर चुनाव है,
पहले थे चाचा शेर, भतीजा है अबकी बार.
परियां तो खिलखिलाती है, सुनते थे अब तलक,
देखा उड़न-परी* को बिलखते भी अबकी बार.
वो [bo] फोर्स लग गया की वो* बाहर निकल गए,
उनका समाप्त हो गया वनवास अबकी बार.
*वैश्विक संपदा
*महाराष्ट्र
*पी.टी. उषा
*क्वात्रोची
-मंसूर अली हाशमी
'नो बोल' सा लगे है ये नोबल तो अबकी बार,
मंदी के है शिकार धरोहर* भी अबकी बार.
फिल्मों पे इस तरह पड़ी मंदी की देखो मार,
बनियाँ उतर चुका था गयी शर्ट अबकी बार.
कहते है अब करेंगे नमस्ते वो दूर से,
स्वाईन से बच गए, हुआ डेंगू है अबकी बार.
जिन्ना को याद करके तिजोरी भरी कहीं!
सूखा कहीं रहा कहीं सैलाब अबकी बार.
है राष्ट्र से बड़ा* वो जहाँ पर चुनाव है,
पहले थे चाचा शेर, भतीजा है अबकी बार.
परियां तो खिलखिलाती है, सुनते थे अब तलक,
देखा उड़न-परी* को बिलखते भी अबकी बार.
वो [bo] फोर्स लग गया की वो* बाहर निकल गए,
उनका समाप्त हो गया वनवास अबकी बार.
*वैश्विक संपदा
*महाराष्ट्र
*पी.टी. उषा
*क्वात्रोची
-मंसूर अली हाशमी
Saturday, October 10, 2009
Noble Prize
नौ [२००९] में बल से हासिल!
नो[No] में वैसे ही बल नही होता,
शान्ति में; जैसे छल नही होता.
कच्चे नारयल में ये मिलेगा पर,
पक्के पत्थर में जल नहीं होता.
सच्चे साधू में मिल भी जाएगा,
हर कोई बा-अमल नही होता.
बाज़* पाए [ई ] बहुत ही सुन्दर पर,
फूल हर एक कमल नही होता.
उसके घर आज आयेंगे- युवराज!
झोंपड़ा क्यां महल नही होता?
कल न आया न आने वाला है,
आज करलो कि कल नही होता.
उसकी कीमत ज़्यादा होती है,
जिसका कोई भी दल नही होता
ऑनलाईन चलन हुआ जबसे,
मिलना अब आजकल नही होता.
अस्मिता भी चुरायी जाती है,
राज 'मन-से' बदल नही होता.
कोढ़ी-कोढ़ी* में बिक ही जाना है,
टीम-वर्क गर सफल नही होता.
ग़म मिले मुस्तकिल हजारो को,
हर कोई 'सहगल' नही होता.
*बाज़= कुछ, चंद
*कोढ़ी=२०[20-20]
-मंसूर अली हाशमी
नो[No] में वैसे ही बल नही होता,
शान्ति में; जैसे छल नही होता.
कच्चे नारयल में ये मिलेगा पर,
पक्के पत्थर में जल नहीं होता.
सच्चे साधू में मिल भी जाएगा,
हर कोई बा-अमल नही होता.
बाज़* पाए [ई ] बहुत ही सुन्दर पर,
फूल हर एक कमल नही होता.
उसके घर आज आयेंगे- युवराज!
झोंपड़ा क्यां महल नही होता?
कल न आया न आने वाला है,
आज करलो कि कल नही होता.
उसकी कीमत ज़्यादा होती है,
जिसका कोई भी दल नही होता
ऑनलाईन चलन हुआ जबसे,
मिलना अब आजकल नही होता.
अस्मिता भी चुरायी जाती है,
राज 'मन-से' बदल नही होता.
कोढ़ी-कोढ़ी* में बिक ही जाना है,
टीम-वर्क गर सफल नही होता.
ग़म मिले मुस्तकिल हजारो को,
हर कोई 'सहगल' नही होता.
*बाज़= कुछ, चंद
*कोढ़ी=२०[20-20]
-मंसूर अली हाशमी
Tuesday, September 22, 2009
Sallu Miyaa
[With Sallu it is sometimes difficult to keep his shirt on....T. O. I./21.09.09]
Shirt [शर्त?]
पहन लूँ या निकालूं फर्क क्या है,
दिखाऊँ या छुपाऊं हर्ज क्या है,
मैं हर सूरत बिकाऊं शर्त? क्या है,
बताएं कोई इसमें तर्क क्या है?
जो बाहर हूँ, मैं अन्दर से वही हूँ,
मगर Under की दुनिया से नही हूँ,
गलत कितना हूँ मैं कितना सही हूँ,
''दसो-का-दम'' हूँ मैं बेदम नही हूँ.
मिरी हीरोईनों में तो हया है,
लिबासों में सजी वो पुतलियाँ है,
नही गर एश तो में कैफ* में हूँ,
असिन, रानी है आयशा टाकिया है.
*खुमार
Shirt [शर्त?]
पहन लूँ या निकालूं फर्क क्या है,
दिखाऊँ या छुपाऊं हर्ज क्या है,
मैं हर सूरत बिकाऊं शर्त? क्या है,
बताएं कोई इसमें तर्क क्या है?
जो बाहर हूँ, मैं अन्दर से वही हूँ,
मगर Under की दुनिया से नही हूँ,
गलत कितना हूँ मैं कितना सही हूँ,
''दसो-का-दम'' हूँ मैं बेदम नही हूँ.
मिरी हीरोईनों में तो हया है,
लिबासों में सजी वो पुतलियाँ है,
नही गर एश तो में कैफ* में हूँ,
असिन, रानी है आयशा टाकिया है.
*खुमार
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