पुन---- र्जनम दिवस [22 फरवरी]
हो गए तिरसठ के अब ; छप्पनिया अपनी मेम है,
हो गए तिरसठ के अब ; छप्पनिया अपनी मेम है,
जंगली बिल्ली थी कभी; अब तो बिचारी Tame है.
सर सफाचट; दुधिया दाढ़ी में बरकत हो रही,
स्याह ज़ुल्फे उसकी अबतक; जस की तस है, same है.
यूं तो अब भी साथ चलते है तो लगते है ग़ज़ब,
'वीरू'* सा मैं भी दिखू हूँ; वो जो लगती 'हेम' है. *[धर्मेन्द्र]
याद एक-दो मुआशिके* ही रह गए है अब तो बस, *[प्रेम प्रसंग]
सैंकड़ो G.B. की लेकिन अबतक उसकी RAM है.
सर भी गंजा हो गया मेकअप पे उनके खर्च से ,
बाकी अब तो रह गया L.I.C. Claim है.
सोचता हूँ कुछ कमाई करलू 'गूगल ऐड' से,
चंद चटखो से मिले कुछ Pence तो क्या shame है.
P.C. अब माशूक है; टीचर भी, कारोबार भी,
अब गुरु, अहबाब, महबूबा तो लगते Damn है.
रहता चांदनी चौक में; रतलाम का वासी हूँ मैं,
इन दिनों करता ब्लोगिंग, हाश्मी surname है.
-मंसूर अली हाश्मी