Tuesday, February 8, 2011

बड़ा 'कल' से तो है 'पुर्ज़ा'


बड़ा 'कल' से तो है 'पुर्ज़ा'  

यथा राजा; तथा प्रजा,
यहाँ कर्ज़ा, वहां कर्ज़ा.


दिवाल्या हो के तू घर जा,
चुकाता कौन याँ कर्ज़ा.

प्रकृति  ने नियम बदले !
वही बरसा, जो है गरजा.

नई रस्मो के सौदे है,
नगद 'छड', कार्ड* ही धर जा.   [*Credit]

अभी तक 'दम' है 'गांधी' में,
जो जीना है तो यूं मरजा.

जो अंतरात्मा मुर्दा,
डुबो दे जिस्म क्या हर्जा?

कुंवा है इक तरफ खाई,
जहां चाहे वहां मुड़ जा.

न दाया देख न बायाँ 
जहां सत्ता, वही मुड़ जा.

है 'BIG SPECTRUM' दुनिया,
जो जी में आये वो कर जा.

भले जन्नत हो क़दमो में,
है दूजा ही तेरा* दर्जा.      *[औरत]

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"आधिकारिक सूचना"

करे गर बात हक़* की तो,       [ *अधिकार/ R.T.I. ]
तू पीछे उसके ही पड़ जा,
खुलासा होने से पहले,
'अदलिये'* से भी  तू जुड़ जा.     [*Judiciary ]

mansoorali hashmi

4 comments:

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

बहुत खूब।

---------
समाधि द्वारा सिद्ध ज्ञान।
प्रकृति की सूक्ष्‍म हलचलों के विशेषज्ञ पशु-पक्षी।

अजित वडनेरकर said...

न दायँ देख न बायाँ
जहाँ सत्ता,वहीं मुड़जा

इसी ट्रैफिकसेंस ने तो लोकतंत्र के राजमार्ग पर जाम लगा रखा है।

उम्मतें said...

'जा' पर दिलचस्प पेशकश ! काश मंत्री पद छोड़ने से पहले ही कोई हम'दर्द' कह देता ...

आगे लाल सिग्नल है मेरे रा'जा'
बच निकल, तू कहीं और उड़ जा

दिनेशराय द्विवेदी said...

भले जन्नत हो क़दमो में,
है दूजा ही तेरा* दर्जा.

इस का कोई जवाब नहीं।