Wednesday, February 9, 2011

वो....ग्ग्या....


वो....ग्ग्या....   

फिर आज इक दिन खो गया,
9 - 2 - 11 हो गया,
लौटा नही है, जो गया.

लो,  नौ-दो-ग्यारह* हो गया,       
पेचीदा कानूनों में फंस,
निर्णय ही देखो खो गया!    

झंडे का वंदन हो गया,
आज़ाद पाके ख़ुद को फिर, 
जागा ज़रा, फिर सो गया.


प्रतिष्ठा अपनी धो गया !
हंगामा मत बरपा करो,
जो हो गया सो हो गया.

'पिरामिडो' के देश का,
वो तो 'इकत्तीस मारखां'     [Ruling since 31 years]
देखो तो फिर भी रो गया.

--mansoorali hashmi

Tuesday, February 8, 2011

बड़ा 'कल' से तो है 'पुर्ज़ा'


बड़ा 'कल' से तो है 'पुर्ज़ा'  

यथा राजा; तथा प्रजा,
यहाँ कर्ज़ा, वहां कर्ज़ा.


दिवाल्या हो के तू घर जा,
चुकाता कौन याँ कर्ज़ा.

प्रकृति  ने नियम बदले !
वही बरसा, जो है गरजा.

नई रस्मो के सौदे है,
नगद 'छड', कार्ड* ही धर जा.   [*Credit]

अभी तक 'दम' है 'गांधी' में,
जो जीना है तो यूं मरजा.

जो अंतरात्मा मुर्दा,
डुबो दे जिस्म क्या हर्जा?

कुंवा है इक तरफ खाई,
जहां चाहे वहां मुड़ जा.

न दाया देख न बायाँ 
जहां सत्ता, वही मुड़ जा.

है 'BIG SPECTRUM' दुनिया,
जो जी में आये वो कर जा.

भले जन्नत हो क़दमो में,
है दूजा ही तेरा* दर्जा.      *[औरत]

=====================

"आधिकारिक सूचना"

करे गर बात हक़* की तो,       [ *अधिकार/ R.T.I. ]
तू पीछे उसके ही पड़ जा,
खुलासा होने से पहले,
'अदलिये'* से भी  तू जुड़ जा.     [*Judiciary ]

mansoorali hashmi

Friday, January 28, 2011

'वो-ही-वो'


[अली सय्यद साहब के ब्लॉग  "उम्मतें'' पर ..

तू ही तू : तेरा ज़लवा दोनों जहां में है तेरा नूर कौनोमकां में है.....


में स्त्री गौरव  गाथा का ज़िक्र  पढ़ कर मुझे भी अपनी  'वो-ही-वो'  याद आगई और ये रच गया है....  ]  

'वो-ही-वो'

[राज़ की बातें] 

रात को वो मैरे बिस्तर पर सोती है,
दिन में; मैं उसके बिस्तर पर सोता हूँ,
दोनों बिस्तर अलग ठिकानों पर लगते,
खर्राटे फिर भी डर-डर के भरता हूँ .
वो पढ़ती * रहती; मैं लिखता रहता हूँ!     *[धार्मिक किताबे]
वो छुपती है और मैं 'छपता' रहता हूँ. 

थक गए घुटने तो अब  कुर्सी  पाई ,
वर्ना अब तक चरणों में रहती आयी !
वो तो मैं ही कुछ ऊंचा अब सुनता हूँ,
चिल्लाने की उनको आदत कब भायी !
वो रोती तो  मैं हंस देता था पहले,
अब वो हंसती और मैं रोता रहता हूँ.



नही हुए बूढ़े, लेकिन अब पके हुए है,
55-62  सीढ़ी चढ़ कर थके हुए है ,
पहले आँखों से बाते कर लेते थे,
अबतो चश्मे दोनों जानिब चढ़े हुए है.
नज़र दूर की अब मैरी कमज़ोर हुई तो,
बस 'वो-ही-वो' हर सू अब तो दिखा किये है.

-मंसूर अली  हाश्मी 

Thursday, January 27, 2011

post blog on mobile

MY POSTS PUBLISHED AT FOLLOWING SITE WILL NOW BE  AVAILABLE ON MOBILES TOO.
http://aatm-manthan.com          

--
mansoorali hashmi
mobile no.  09893833286

Wednesday, January 26, 2011

गणतंत्र दिवस की बधाई


                            
                              अक्सर ...तो पाते है वही ; देते*   है जैसा लोग,
                        इस वास्ते तो इसका 'REPUBLIC' नाम है,
                     निर्भर हुए है खुद पे; ख़ुशी की तो बात है,  .
                        अपने ही हाथो से हमें मिलता 'इनाम' है.
                      *[कमेंट्स, मत, प्रेम, योगदान]        
                              
  
Mansoor ali Hashmi

Wednesday, January 19, 2011

JESSICA/ARUSHI

No One Killed Them







जेसिका/arushi

क्या हुआ गर  ये महफूज़ न रह सकी,
'फैसले' इनपे "रक्षित" रहेंगे सदा,
ज़िंदा रखेंगे इनको किताबों में हम,
छाया-चित्रों पे हम इनके होंगे फ़िदा. 
नोट:- {Pictures have been used for educational and non profit activies. If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture
-- mansoorali hashmi

Friday, January 14, 2011

यह कैसा शहर है....!

यह कैसा शहर है....!


["शब्दों  का  सफ़र "  के  आज  के .... .   फ़रमान सुनें या प्रमाण मानें  से प्रेरित,,,]


'नापा' है चाँद जबसे, मअयारे हुस्न बदला,  
पैमाना-ए-नज़र अब माशूक की कमर है.















'प्रमाणम'* काम आते अब [जनम] पत्रियो के बदले, 
ज्योतिष की क्या ज़रूरत 'भौतिक' पे अब नज़र है.

'फरमान' है- कि गिर न पाए ग्राफ अपना,
महंगाई बढ़ रही है, ये भी तो ख़ुश ख़बर है. 

आतंक लाल-हरा था, भगवा भी बन रहा है,
'फरमा' रहे है हाकिम, हमको तो सब ख़बर है. 

पी.ए.सी., जे.पी.सी. भी लाएगी क्या नतीजा,
सारे सबूत जबकि होते इधर-उधर है.


 [*नापतौल/ आकर-प्रकार ]


Note: {Picture have been used for educational and non profit activies. If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture.}
-मंसूर अली हाश्मी 


# मकर सक्रान्ती की हार्दिक बधाई,  सभी ब्लागर एवम पाठक साथियों को.

Sunday, January 9, 2011

हम लोग

हम लोग 




'द्रोण' जैसे 'गुरु' है तो यह तो होना है,
'अंगूठे' आज भी अपने कटा रहे हम लोग.

विदेशी लूटेगा कैसे 'सुनहरी चिड़िया' अब,
उन्ही के 'खातो' में 'लक्ष्मी' छुपा रहे हम लोग.


प्याज़ ही में ये दम था रुला सका हमको,
वगरना, बेटी, बहू को रुला रहे हम लोग.

धमाकों में भी तो, 'आनंद' 'असीम' है यारों, 
'उड़ाके' ख़ाक दिवाली मना रहे हम लोग.

नए ज़माने में, पीछे क्यों हम ही रह जाते,
स्वयं को लूट के देखो कमा रहे हम लोग.

अब इन्किलाब कि बाते हमें पसंद नही,
'स्वतंत्रता' ही को 'बंदी' बना रहे हम लोग.
Note: {Picture have been used for educational and non profit activies. If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture.}
-मंसूर अली हाश्मी 

Monday, January 3, 2011

कब्जा सच्चा, दावा झूठा !



*("तीसरा  खंबा पर श्री दिनेश रायजी द्विवेदी  का 'फ़ैसला' पढ़ कर........रचित) 

'.क़ब्ज़ा'  सच्चा  है, 'दावा' झूठा  है,
बस चला जिसका उसने लूटा है.

लाटरी जैसे...लगते 'निर्णय' है,
भाग्य अच्छे तो, छींका टूटा है.

अब सड़क भी तो उसके अब्बा की,
पहले जिसने भी गाढ़ा खूँटा है.

ख़ाक पर चलना जिसकी किस्मत थी,
अब करो में भी दिखता जूता है.

सब्र से ही बस, अब नही भरता,
दिल का पैमाना जब से टूटा है.

जिसकी ख़ातिर में रूठा दुनिया से,
वो ही अब देखो मुझसे रूठा है.

mansoorali hashmi

फूटे नसीब है........!

फूटे नसीब है........!


हालात आजकल तो अजीबो ग़रीब है, 
है डाक्टर मरीज़, तो रोगी तबीब है.

वां 'नेट' था न डाकिया, फूटे नसीब है,
ख़त जिसके साथ भेजा वो निकला रक़ीब है.

निकला वतन से दूर वो होता ग़रीब है,
भारत में जो भी आया वो बनता 'हबीब' है!

उनका ये काम* था कि मिटाएंगे दूरीयाँ,      *Telecom
इस वास्ते तो रादिया उनके करीब है.

हमदर्द उनको* अब भी पुकारे है 'मसीहा'       *डाक्टर विनायक' 
कानून  भेजता जिसे सूए सलीब है.

-मंसूर अली हाश्मी