Sunday, May 16, 2010

बड़ा कौन ?


बड़ा कौन ?

किस 'बला' में है मुब्तला 'गीरी'*       [ब्लागीरी]
झाड़ या फूंक ही करा लीजे.

फंकी चूरण की लो जो पेट दुखे,
सर दुखे बाम ही लगा लीजे.

समझ नही आता तकलीफ कहाँ पर है? हिन्दी ब्लागिंग में जो उठा-पटक चल रही है , अफ़सोस क विषय है. अपनी खामोशी कुछ इस तरह तौड़  रहा हूँ:-

'गल' में 'गू' आ गया है क्या कीजे?
थूंक कर चाटना, सज़ा कीजे.


किसको छोटा किसे बड़ा कीजे.
सब बराबर है अब मज़ा कीजे

बलग़मी  है सिफत बलागों की,
थूंक कर साफ़ अब गला कीजे.

जो है लेटा उसे बिठाना है,
बैठने वाले को खड़ा कीजे.

यूं तो ठंडक थी 'उनके' रिश्तो में, 
बढ़ गया ताप अब हवा कीजे.


ख़ामशी ओढ़ने से क्या मतलब,
दिल दुखा है अगर दवा कीजे.


हर बड़े पर ये बात वाजिब है,
जो है छोटा उसे क्षमा कीजे. 

फिर न हो पाए ऎसी उलझन अब,
आइये मिलके सब दुआ कीजे.

mansoorali हाश्मी
http://atm-manthan.com

Thursday, May 13, 2010

शर्म हमको मगर नही आती....


शर्म हमको मगर नही आती....

फटाफट इसमें* मिल जती है शोहरत,      [*T-20] 
जो हारे भी तो खुल जाती है किस्मत.

हाँ ! मैंने दी है थाने  पर भी रिश्वत,
न देता, कैसे बनता 'पास पोरट' ?

हो रिश्वतखोर या आतंकी,नक्सल,
वे दुश्मन देश के है यह हकीक़त.

''गयाराम'',  आ गया सत्ता की ख़ातिर,
है 'खंडित' 'झाड़' की हर शाख़ आह़त.

बदलते जा रहे पैमाने* देखो,            [*मापदंड]
उसे अपनाया जिसमे है सहूलत*.       [*सुविधा]    

जो चित में जीते, पट में भी न हारे,
इसी का नाम है यारो सियासत.

'यथा' अब 'स्थिति' भाती है क्योंकर? 
कभी सुनते थे हरकत में है बरकत.

मोहब्बत का सबक उनसे* भी सीखा,     [*शाहजहाँ]
दिलो में लेके जो* आए थे नफ़रत.         [*मुग़ल] 

है दुश्मन घर में, बाहर भी हमारे,
न संभले गर तो हाथ आयेगी वहशत.

रखा था 'गुप्तता' की जिनको ख़ातिर,
उसी ने बेच डाली है अमानत.
 
गरीबी की अगर रेखा न होती,
चमकती कैसे नेताओं की किस्मत.

वो PC हो मोबाइल या के टी वी,
नहीं मिलती है अब आँखों को राहत.

फसानो में है गुम, माज़ी के क्यों हम?
ज़माना ले रहा है देखो करवट.

फअल* शैतानी है जबकि हमारे,        [*कर्म] 
पढ़े जाते है किस पर हम ये लअनत !

ब्लोगिंग पर ही कुछ बकवास कर ले,
जो चल निकले तो मिल जाएगी शोहरत. 
mansoorali hashmi

Saturday, April 24, 2010

आडम्बर

अजित वडनेरकर जी,
 आज[२४-०४-१०/shabdon ka safar]  फिर आपने प्रेरित  किया है , आडम्बर के लिए, विडम्बना के साथ खेलना पड़ रहा है:-
__________
I [मैं]  P ह L ए 
==========

आ ! डम्बर-डम्बर खेले,
वो मारेगा तू झेले , 


जो हारेगा वो पहले,
ज़्यादा मिलते है ढेले*      [*पैसे]


देखे  है ऐसे मेले,
बूढ़े भी जिसमे खेले!


आते है छैल-छबीले,
बाला करती है बेले ,     


मैदाँ वाले तो  नहले,
परदे के पीछे दहले.


जब बिक न पाए केले*    [*केरल के]
वो बढ़ा ले गए ठेले.


"मो"हलत उनको जो "दी" है,
उठ तू भी हिस्सा लेले.  


-mansoor ali hashmi 
http://aatm-manthan.com 

Wednesday, April 21, 2010

क्यों?/Why?


क्यों?


ब्लॉगर भी  ज़हर फैला रहा है!
जो बोया है वो काटा जा रहा है.

धरम-मज़हब का धारण नाम करके ,
भले लोगों को क्यों भरमा रहा है.

अदावत, दुश्मनी माज़ी की बाते,
इसे फिर आज क्यों दोहरा रहा है.

सहिष्णु बन भलाई है इसी में,
क्रोधी ख़ुद को ही झुलसा रहा है.

हिफाज़त कर वतन की ख़ैर इसमें,
तू बन के बम, क्यों फूटा जा रहा है.

न  भगवा ही बुरा,न सब्ज़-ओ-अहमर*,
ये रंगों में क्यों बाँटा जा रहा है.

बड़ा अल्लाह , कहे भगवान्, कोई;
क्यूँ इक को दो बनाया जा रहा है. 

मिले तो दिल, खिले तो फूल जैसे,
मैरा तो बस यही अरमाँ रहा है.

*अहमर=लाल 
-मंसूर अली हाश्मी 

Monday, April 12, 2010

नि:शब्द



नि:शब्द!

[अजित वडनेरकर जी  की अ-कविता रूपी कविताओं से किंक्रतव्यविमूढ़ 
 होकर............]

प्रयोग करके शब्दों के ब्रह्मास्त्र चल दिये,
अर्थो का क़र्ज़ लाद के अब चल रहे है हम.

शब्दों के कारोबार में कंगाल हो गए,
अर्थो को बेच-बेच के अब पल रहे है हम.

शाश्वत है शब्द, ब्रह्म भी, नश्वर नहीं मगर,
अपनी ही आस्थाओं को अब छल रहे है हम.

तारीकीयों से बचने को काफी चिराग़ था,
हरसूँ है जब चरागां तो अब जल रहे है हम. 

तामीर होना टूटना सदियों का सिलसिला,
बस मूक से गवाह ही हर पल रहे है हम.

हम प्रगति के पथ पे है, ऊंची उड़ान पर,
कद्रों* की बात कीजे तो अब ढल रहे है हम.

*मूल्य [values]
mansoorali hashmi

Thursday, April 8, 2010

मुफ्त की सलाह!


मुफ्त  की सलाह!

[शब्दों का सफ़र....की आज [०८.०४.१०.] की पोस्ट 
बंद कमरों के मशवरो के स्वरूप,
फैसले जो हुए अमल करना,
शहद पर हक है हुक्मरानों का,
जो बचे उसपे ही बसर करना.

हाँ! सलाह तुमसे भी वो लेंगे ज़रूर,
वैसे तो उनके पास भी है 'थरूर',
दिल के खानों में रखना पौशीदा,
लब पे लाये!  नहीं है ख़ैर  हुजुर.

एम्बेसेडर, मुशीर बनते है,
बस वही, हाँ जो हाँ में भरते है,
उनकी तस्वीर भी पसंद नही,
जो किसी 'दूसरे' से जुड़ते है. 

-मंसूर अली हाशमी 

Saturday, April 3, 2010

बेडमिन्टन/badminton

बेड man -शन [shun ]

SO नया भी है पुराने जैसा, 
मर्ज़ उनका है ज़माने  जैसा,
अपने साथी को बदल कर दोनों,
खेल पायेंगे दीवाने जैसा!
 -मंसूर अली हाशमी

Sunday, March 28, 2010

आज कल / Now a Days


 आज कल 

ब्लोगेर्स:
छप-छपाना, न हुआ जिनको नसीब,
बज़ बज़ाते फिर रहे है इन दिनों.



खुबसूरत जब कोई चेहरा* दिखा,      [*फेसबुक पर]
टिपटिपाते फिर रहे है इन दिनों.

M F Husain :
बेच कर घोड़े भी वो सो न सके,
हिन् हिनाते फिर रहे  है इन दिनों,

रंग में ख़ुद ने ही डाली भंग थी,
तिलमिलाते फिर रहे है इन दिनों

'सोच' कपड़ो
* में  भी उरीयाँ हो गयी,      [*केनवास पर ]
मुंह छुपाते फिर रहे है इन दिनों.



तब  ब्रुश था अब है 'कातर'* हाथ में,    [*क़तर देश]
कट-कटाते फिर रहे है इन दिनों.

नंगे पाऊँ,  पर ज़मीं तो ठोस थी,
लड़खडाते फिर रहे है इन दिनों.

होश का सौदा किया था शौक़ में,
डगमगाते फिर रहे है इन दिनों.


थी  महावत, स्त्री-  गज गामिनी,
सूंड उठाये फिर रहे है इन दिनों.

राज-नीति: 
राज नारी पहलवानों* पर करे?        *[मुलायम सिंह]
बड़बड़ाते  फिर रहे है इन दिनों.


चलती गाड़ी* से उतरना पड़ गया,     *[लालू प्रसाद]
दनदनाते फिर रहे है इन दिनों.

हार नोटों का गले जो पड़ गया*,       *[मायावती]
खड़खड़ाती  फिर रही है इन दिनों.

seat की खातिर गवारा SIT भी है,      *[मोदी]
shitशिताते फिर रहे है इन दिनों.

Berth कोई खाली होने वाली है?       ?
दुम हिलाते फिर रहे है इन दिनों.

झोंपड़ी में पौष्टिक खूराक है*,             *[राहुल गांधी]
खटखटाते फिर रहे है इन दिनों.

पार्टी ने छोड़ा*, छोड़ी पार्टी,                 *[उमा भारती]
दिल मिलाते फिर रहे है इन दिनों.


-मंसूर अली हाश्मी 
http://mansooralihashmi.blogspot.in

Wednesday, March 24, 2010

क्रिकेट की गिरगिट

आदरणीय दिनेश रायजी,
सादर नमस्कार,
महेंद्र नेह जी कि शानदार रचना पर एक गुस्ताखाना हज़ल हो गयी है. दरअस्ल आई.पी.एल  मेच देखते-देखते यह पढ़ना-लिखना कार्यरूप ले रहा था.
आपको इस बात का इख्तियार देता हूँ कि इस सठियाई हुई रचना को सिरे से ख़ारिज करदे, edit  करदे या approve करदे. आपका जवाब मिलने पर यह
पब्लिश होगी या रद्द.
क्रिकेट की  गिरगिट
 :
चंचल किशोरियां है,आँखों में मस्तियाँ है,
हाथो में फूल नकली ,छतियाँ धड़कतियां है.

मैदान में खिलाड़ी,दर्शक से खेलती ये ,
क्रिकेट पीछे-पीछे , अगली ये पंक्तियाँ है.

क्रिकेट के गणित से लेना न कुछ है देना,
चोक्को  को लात देकर ,छक्के पकड़तियां है.

सौष्ठव शरीर होवे, मैदान इसलिए है,

मन रंजनो कि खातिर कितनी उछल्तिया है,
 
 उत्साह वर्धनी है, कुछ है कि कामिनी है,
दुस्साहसी भी इनमे, किसकी ये गलतियाँ है.

-mansoorali hashmi
http://aatm-manthan.com



[अरे! बहुत अच्छी बनी है। आप इसे प्रकाशित कीजिए।]
 -दिनेशराय द्विवेदी:{note: आपकी मंजूरी भी public  करदी है- आपको सठियाने में भी ज्यादा साल नहीं बचे!}