चुनाव, लोकतंत्र की अज़ान* है *Call / पुकार
कि बस वही महान है।
'वज़ीर जिसका "शाह" हो,
उसे तो इत्मीनान है।
हो 'साहब' मेहरबान तो ,
गधा भी पहलवान है।
है खून दाढ़ में लगा,
फंसी उसी की जान है
वजूद इनका गर कोई,
तो सिर्फ एक 'निशान'* है
[*चुनावी]
ये घोषणा के पत्र भी,
छलावे ही का दान है ।
है मौल-भाव भी यहाँ,
धरम भी अब दुकान है।
है सच क्यों पस्त-पस्त आज,
औ[र] झूठ पर उठान है ?
बने वो 'भूत' फिर रहे !
न 'शोले' है न 'शान' है।
कहाँ है सादा लोह लोग
ये क्या वहीं जहान है ?
यहाँ पे आदमियत अब,
पड़ी लहू-लुहान है।
कि अब यहाँ तो जान ही ,
किसान का लगान है।
http://mansooralihashmi.blogspot.in
No comments:
Post a Comment