याँ लूट मची है लेले !
ख़ुद मारे, ख़ुद ही झेले।
ये दर्शक तो है गेले* *बेंडे
चीयर-बाला इनपे ठेले .
'श्रीनि' लगाए मेले,
बेचारे! 'संत'* अकेले. *श्री संत
बस कुर्सी छीन न मेरी,
'दामाद' भले ही लेले.
आ, 'डाल मियाँ' तू अन्दर,
बाहर 'शिर्के', 'जगदाले'
'शशांक' मनोहर लेकिन,
ये 'जेटली' तो शर्मीले!
अब जांच कोई भी करले,
सब भाई है मौसेरे.
'तू'* कर ले लाख ट्विट पर, *'ललित मोदी'
हो कौनसे 'दूध-धुलेले' ?
'पावर'* क्यों काम न आया, *'पंवार' का
वो भी तो छाछ जलेले.
अब ख़त्म करो भी झगडा,
मिल-जुल कर सारे खेले.
--mansoor ali hashmi
3 comments:
आपके साथ यही तकलीफ है हाशमी साहब। आप किसी को नहीं बख्शते। सबके साथ एक जैसी बेरहमी बरत कर बखिया उधेड देते हैं।
आपकी इस बेरहमी पर कुरबान। सदा जवान रहे आपकी यह बेरहमी।
बहुत खूब .....!
खूबसूरत कटाक्ष
सादर
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