ये किसका इंतज़ार है ?
उसी में भ्रष्टाचार है, उसी से भ्रष्टाचार है.
शिकारी भी भ्रष्ट गर शिकार भ्रष्टाचार है.
वो कह रहे है अब तो ये लड़ाई आर-पार है.
वो चाह इन्किलाब की तो कर रहे मगर यहाँ,
बने है अनशनो के रास्ते, तो त्यौहार है.
समीकरण है ठीक, बात फिर भी बन नहीं रही,
यहाँ है चौकड़ी अगर, वहां भी यार चार है.
हरएक टोपी छाप की दवा नहीं है कारगर,
है अन्ना केवल एक, और मरीज़ तो हज़ार है.
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--mansoor ali hashmi
6 comments:
बातें करेंगे हम कुछ इसी तरह,
ऐसी बातों से ही बेडा पार है।
@ गरीब ढूंढते रह जाओगे,
बहुत मुश्किल है मंसूर अली साहब आप उन बेचारों की मेहनत और कारकर्दगी को रिकग्नाइज क्यों नहीं करते आखिर ?
अब देखिये ना १९७३-७४ से लेकर सन २००० तक तकरीबन २७ फ़ीसदी लोगों को उन्होंने गरीबी रेखा से ऊपर उठा दिया और एक आप हैं जो उन्हें बुरा भला कहने के लिए अगले दस सालों (२०११ तक) के आंकड़े दबा गये :)
यकीन जानिये उनका टारगेट गरीबी रेखा को ग्राउण्ड ज़ीरो पर लाना है :)
दुआ कीजिये कि मुल्क में एनडीए और यूपीए अलाइंस सलामत रहें ! बहुत जल्द किसी बंदे को गरीब गुरबा कहने को तरस जाइयेगा आप :)
मंसूर अली साहब जब भी इन लोगो को देखता हुं तो दिल रोता हे, अपने आप को बेबस समझता हुं, ओर इन हालात पर इन नेताओ पर ओर भ्रष्टाचारियो पर गुस्सा आता हे, सब कुछ हे देश मे फ़िर भी गरीब हे, बहुत सुंदर कविता कही आप ने.
हजार लोग गरीब हो जाते हैं तब एक अमीर ईजाद होता है।
सही बताया है आपने।
बहुत सटीक!!
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