Sunday, August 14, 2011

YAAHOOO !


या....हूँ....
[आज शम्मी कपूर के दुखद निधन पर उन पर लिखे सन २००८ के एक लेख को पुन: प्रस्तुत कर रहा हूँ, श्रद्धांजली स्वरूप:]
( इत्तेफाक से ये 'आत्म-मंथन' पर २०० वीं पोस्ट के क्रम पर प्रकाशित हो रही है.)

Shammi Kapoor





शम्मी कपूर 

एक समय में अरब मुल्को में खासकर लेबनान,जोर्डन ,कुवैत वगेरह में शम्मी कपूर का जादू चलता था। 'जंगली' वाला ज़माना था वह। याहूँ तो यहाँ खूब गूंजा, सिर्फ़ नौजवानों में ही नही सभी तबको में। 'याहूँ'  काल की यादें  आज भी पुराने लोगों के दिलो में स्थापित है। desktop पर पहुँचने वाला याहू भी इसी नस्ल का है, इसका मुझे कोई अंदाज़ नही।

फिर 'तीसरी मन्ज़िल के musical songs ने भी हम से ज़्यादा अरब लोगो  को ही नचाया था। शम्मी कपूर की कद-काठी , रंग-रूप में अरब लोगों को अपने जैसी ही झलक मिलती थी । खासकर तबियत की 'शौखी'  इसको तो ये लोग अपनी ही विरासत समझते है।

शम्मी कबूर [अरबी भाषा में 'प' स्वर के आभाव से बना उच्चारण] का दो दशक तक यहाँ एक छत्र राज कायम रहा।

इन देशो के मूल निवासियों के अतिरिक्त यहाँ बसे हुए एशियन मूल के लोगों का भी बहुत बड़ा योगदान रहा भारतीय रंगकर्मियों और फिल्मो की लोकप्रियता को बढ़ावा देने में।

अब ग्लोबलाइज़ेशन  के दौर में कलाकारों को जो 'मेवा'  खाने मिल रहा है, वह उनकी सेवाओ के मुकाबले में कई गुना ज़्यादा है। भाग्यशाली है आज के अनेक कलाकार!

एक और भारतीय सांस्कृतिक राजदूत 'शम्मी कपूर' को मेरा सलाम।

मंसूर अली हाश्मी [मिस्र से , २०सितम्बर २००८]

5 comments:

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

अभी एकाध घंटे पहले "याहू" साईट पर यह दुखद समाचार मिला.
उनकी निराली अदाओं पर कुछ कहना मुश्किल है. हिंदी सिनेमा के इतिहास में ताजगी और रौनक उनसे है.
-श्रद्धांजलि-

दिनेशराय द्विवेदी said...

निस्सन्देह वे बड़े कलाकार थे। अपने पिता की परंपरा को उन्हों ने आगे बढ़ाया। उन्हें आत्मिक श्रद्धांजलि।

विष्णु बैरागी said...

आज सुबह पहला समाचार यही हमला। वे मस्‍तमौला कलाकार थे - अपनी किस्‍म के अकेले।
अपका आलेख पढकर उनकी शोखियॉं याद हो आईं।

उम्मतें said...

बतौर एक्टर हम कभी उनके कायल नहीं रहे पर भारतीय सिनेमा में उनका योगदान नकारा भी नहीं जा सकता ! खुदा मरहूम को जन्नत बख्शे , उनके परिवार को दुःख की इस घड़ी में हौसला दे !

Udan Tashtari said...

आत्मिक श्रद्धांजलि...