धोए गए कुछ ऐसे कि बस साफ़ हो गए !
वैसे भी तर-ब-तर* तो थे इस माहे जून में.
[*बहुत सारी जीत और पैसा कमाया था पिछले ही महीने [जून] तक ]
चारो गँवा के बैठ गए अबतो खाली हाथ,
आता नहीं है जोश क्यूँ अब अपने खून में.
एक 'सैंकड़ा' सचिन अगर ले आता साथ में,
ख़ुश होके भूल जाते सभी कुछ जुनून में.
बल्ले नहीं चले मगर इस बार गेंद भी,
'गोरो' को लग रही थी Honey जैसी Moon में.
अपनी अपेक्षाए ही हमको तो 'छल' गई,
हम है कि ढूँढते है उसे कोई Goon* में. *ठग
--mansoor ali hashmi
3 comments:
कितना हंगामा कर रखा था मीडिया ने सिरीज शुरू होने से पहले ! वहां जाकर ऐसा लगा कि जैसे हमारे हीरो ...नौसिखिये / कल के लौंडे हों !
हमेशा की तरह शानदार पोस्ट !
मुझे तो क्रिकेट इस देश के लिए 'विलासिता आधारित अपराध' लगता है।
कमाल की रचना !
विलंब ज़रूर हो गया कमेंट देने में … लेकिन इस रचना के लिए दाद दिए बिना रहना संभव नहीं :))
धोए गए बुरी तरह इस मानसून में,
वैसे भी तर-ब-तर* तो थे इस माहे जून मे
आपके निराले ही अंदाज़ हैं !
बल्ले नहीं चले मगर इस बार गेंद भी,
'गोरो' को लग रही थी Honey जैसी Moon में
जियो चचाजान ! जियो !!
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