Tuesday, August 9, 2011

OPTIMISM !

चल मेरे घोड़े टिक-टिक-टिक..........


'ज्ञानोक्ति' पर मिले कोटेशन से प्रेरित होकर:-


"जब आप सभी सम्भावनायें समाप्त कर चुके हों, तो याद करें - आपने सभी सम्भावनायें समाप्त नहीं की हैं।"
~ थॉमस ऑल्वा एडीसन।


संभावनाए क्षीण है, घोटाले करना छोड़ दे ,
सी-डब्ल्यू , G में जेल तो, 2 G भी भारी फ़ैल है.
करके 'खनन' पाई है अपनी कब्र ही खोदी हुई,

बुझ रहे दीपक सभी बाकी बचा न तेल है,

पढ़ के 'एडिसन' को फिर उम्मीद की जागी किरण,
'लोकपाली' गर बचाले* तो FRONTIER MAIL है.
    *[minus[-] P.M. वाला/ बस कोशिश करके  पी.एम्. बन जाओ ]

9 comments:

विष्णु बैरागी said...

बहुत ही तीखी, तेज-चुभनवाली बात है आपकी। महसूस करना तो दूर, पता नहीं 'वे' समझोंगे भी या नहीं।

आनन्‍द आ गया।

दिनेशराय द्विवेदी said...

वास्तव में तीक्ष्ण।
उन की खालें मोटी हो चुकी हैं। इतनी कि खाल तक तंत्रिकाओं की पहुँच ही नहीं रही। अब उन्हें कुछ महसूस नहीं होता। हम सोचते हैं, वे सुधर जाएंगे। डायनासौर सुधरते नहीं वे नष्ट होते हैं। प्रकृति उन्हें नष्ट कर देती है।

Anonymous said...

Ismail Safdari said:

"Could not understand the last sentence? May be I am not aware of a few things here."

Mansoor ali Hashmi said...

@ ismail Safdari,
Thank you very much for your comment. For me it's an 'ice breaking' to attract a non-Hindi reader to my blog site. Here, i am attempting to answer your query:-

"पढ़ के 'एडिसन' को फिर उम्मीद की जागी किरण,
'लोकपाली' गर बचाले* तो FRONTIER MAIL है."

With the introduction of a new Lokpal Bill there will hardly remain any chance of any 'Big Scam' unless that bill excludes the P.M. So here remains the 'Ray of Hope' that at least one person left who can manage any "GHOTALA" after all. And this way the Frontier Mail of Scammer will run uninterruptedly.

I had tried to explain it by an asterisk sign "*".......

*[minus[-] P.M. वाला/ बस कोशिश करके पी.एम्. बन जाओ ]

However, if it still remains incomprehensible , I assume it as a shortcoming of my so-called poetry.

Regards.

Mansoor ali Hashmi

उम्मतें said...

@ जनता के लिए संभावनाएं बतर्जे एडीसन -

पी.एम. बोले तो पोस्टमार्टम ना :)


नोट :-
हम हमेशा से यही तो करते आये हैं जिस्मों का / घटनाओं दुर्घटनाओं का / ख्यालों का / करतूतों का पोस्टमार्टम !

Mansoor ali Hashmi said...

@ Ali

आपने तो सचमुच पोस्ट मार्टम कर डाला अली साहब, हम तो बूढ़े घोड़े को हांके जा रहे है....टिक-टिक-टिक...

Anonymous said...

@ Ali...


कभी कभार ऐसा लिख दूं तो बुरा मत मानियेगा !

Mansoor ali Hashmi said...

@ ali
बिलकुल नहीं, अली साहब, आपका तो हर लफ्ज़ नपा तुला होता है, आपकी टिप्पणी भी सारगर्भित होती है,ख़ुश किस्मत है जिनको मिल जाया करती है.

Udan Tashtari said...

आह!! पेना.........चुभा!!