कैसा ये ज़माना है !
इस देश के बाहर भी इक अपना ख़ज़ाना है.
लिस्ट हमने भिजायी है, हम 'DRONE' नहीं करते ,
'कस्साबो' को हमने तो मेहमान बनाना है.
'फिफ्टी' या 'ट्वेंटी' हो ये टेस्ट [Taste!] हमारा है,
पैसा हो जहां ज़्यादा,उस सिम्त ही जाना है.
ये भी तो सियासत है, सत्ता से जो दूरी हो,
'केटली' को गरम रखने '[सु] शमा' को जलाना है.
ये दौरे ज़नाना है, माया हो कि शीला हो,
ममता को ललिता को अब सर पे बिठाना है.
'बॉली' न यहाँ 'वुड' है,अफवाहों का झुरमुट है,
लैला की ये बस्ती है, मजनूं का ठिकाना है.
घोटाले किये लेकिन, 'आदर्श' नहीं छोड़ा,
मकसद ये 'बुलंदी' पर, बस हमको तो जाना है.
निर्णय ही 'अनिर्णय' है; इस वास्ते संशय है,
ये कैसा ज़माना है! कैसा ये ज़माना है!!
-mansoor ali hashmi
9 comments:
ये कैसा ज़माना है! ...बस, यही समझ आ जाये तो समझो जग जीत लिया...क्या खूब रचा है आपने.
कभी ये नया था अब पुराना सड़ता हुआ जमाना है।
बहुत सही फारमया़ हज़रत :))
Irfan Uddin ने आपके लिंक पर टिप्पणी की|
Irfan ने लिखा: ये दौरे ज़नाना है, 'माया' हो कि 'शीला' हो, 'ममता' को 'ललिता' को अब सर पे बिठाना है...... Loved it Mansoor Saheb....
आपने आज फिर लाजवाब कर दिया.
निर्णय ही 'अनिर्णय' है; इस वास्ते संशय है,
ये कैसा ज़माना है! कैसा ये ज़माना है!!
एक से बढ कर एक शानदार शेर हकीकत बयान करते हुये और तीक्ष्ण प्रहार करते हुये
गोरो को भगाया अब "काले"* को बुलाना है,
इस देश के बाहर भी इक अपना ख़ज़ाना है
बहुत खूब...
हमेशा की तरह धारदार !
वह क्या कविता है!में आसा करता हू आप हम लोगो के लिए इसी तरह की कविता देते रहे! आप लोग मेरे ब्लॉग पर भी आये !मेरे ब्लॉग पर आने के लिए बस "यहाँ क्लिक करे" हा एक बात कमेंट्स जरुर दे !
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