कुछ भी तो नहीं देखा !
'बिजली' से पंखो को भी चलते देखा,
'पंखो' से ही बिजली को बनते देखा.
'लादेनो-सद्दाम' बनाने वालो के,
हाथो ही हमने 'उनको' मरते देखा.
बोतल से आज़ाद किये जिन जिसने भी,
बिल आख़िर उससे ही डरते देखा.
बिल आख़िर उससे ही डरते देखा.
पाल रखा था; दूध पिलाते थे जिसको,
अपने ही मालिक को भी डसते देखा.
'अंग्रेज़ो' को मार भगाया था जिसने,
'अंग्रेज़ी' ही पर उनको मरते देखा.
नफरत की बुनियादों पर तामीर हुई!
एसी दीवारों को हमने गिरते देखा.
हाँ! हम ही मिलकर 'सरकार' बनाते है,
'सरदारी' में अपनी ही चलते देखा!
-mansoor ali hashmi
4 comments:
गुलदस्ते में कटार हैं आपके ये अशआर। लिखी आपने लेकिन बात है सारे जमाने की। शुक्रिया भी और मुबारकबाद भी।
वाह!
Bahut khoob kahaa hai aapne.
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तीन भूत और चार चुड़ैलें।!
14 सप्ताह का हो गया ब्लॉग समीक्षा कॉलम।
लाजवाब.....
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