*("तीसरा खंबा पर श्री दिनेश रायजी द्विवेदी का 'फ़ैसला' पढ़ कर........रचित)
बस चला जिसका उसने लूटा है.
लाटरी जैसे...लगते 'निर्णय' है,
भाग्य अच्छे तो, छींका टूटा है.
अब सड़क भी तो उसके अब्बा की,
पहले जिसने भी गाढ़ा खूँटा है.
ख़ाक पर चलना जिसकी किस्मत थी,
अब करो में भी दिखता जूता है.
सब्र से ही बस, अब नही भरता,
दिल का पैमाना जब से टूटा है.
जिसकी ख़ातिर में रूठा दुनिया से,
वो ही अब देखो मुझसे रूठा है.
mansoorali hashmi
6 comments:
मतलब द्विवेदी जी को पढके आना होगा :)
हमेशा की तरह बेहतरीन। आप का जवाब नहीं।
नया वर्ष आप को और आप के परिवार को बहुत बहुत मुबारक हो!!!
सब्र से ही बस, अब नही भरता,
दिल का पैमाना जब से टूटा है.
बेहतरीन...वाह...
सब्र से ही बस, अब नही भरता,
दिल का पैमाना जब से टूटा है.
जिसकी ख़ातिर में रूठा दुनिया से,
वो ही अब देखो मुझसे रूठा है.
कुछ मसरूफियत रही सो आ नहीं सकी... पर आप भी तो रास्ता भूल गए...खैर छोड़िए...मजा आ गया पढ़कर.....बहुत खूब...
बहुत खूब....
Greaat post thankyou
Post a Comment