श्रृद्धा और सबूरी
ब्लोगर, ब्लोगर, ब्लोगर्र,
लिख लिया? शिघ्र पोस्ट कर,
आएगा कोई तो 'जाल'' पर,
सैंकड़ो है तेरे 'चारा'- गर,
हो न मायूस तू एक पल,
सब्र कर, सब्र कर, सब्र कर.
एक दो, मुझसे लो दो गुनी,
"बहुत बढ़िया", बहुत ले लिया,
उससे होती नहीं सनसनी,
पोस्ट १२ बजे क्या लगी,
शून्य पर है टिकी टिप्पणी!
क्यों विकल, क्यों विकल, क्यों विकल,
'बाबरी' या जनम-स्थल?
कौन होगा यहाँ कल सफल,
सर से ऊंचा हुआ अबतो जल,
कर ले मंजूर सब एक हल,
हॉस्पिटल, हॉस्पिटल, हॉस्पिटल!!!
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mansoorali hashmi
7 comments:
लाजवाब....बेमिसाल...कमाल...मंसूर साहब हम तो आपकी कलम के दीवाने हो गए सच...आज के हालात पर क्या खूब कहा है आपने...दाद कबूल करें जनाब...
नीरज
aapne bahut hi sundar "HAL" diya hai.
फिलहाल तो फैसला टल गया है अब वो जब भी आये , जानवरों नें माहौल इस तरह का बना दिया है कि अंदेशा होने लगा है कि हास्पिटल वाली आपकी मुराद किसी और तरह से पूरी ना हो जाये :(
आपकी कविताओं कि सहजता मुझे बहुत अच्छी लगती है. इस रचना पर मेरी भी दाद कबूल फरमाएं.
दुरुस्त फरमाया !!
हाशमी साब हम आपके पुराने प्रशंसक है।
बच्चनजी की कविता की इससे बेहतर और रचनात्मक पैरोडी हो नहीं सकती।
उनके साहबज़ादे को भी पढ़वाइयेगा। वो भी ब्लागर है:)
हाशमी जी,नेट कई दिनों से बंद था आज ही चालू हुआ है। बहुत शानदार रचना है। तारीफ के लिए शब्द नहीं हैं।
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