शर्म हमको मगर नही आती....
जो हारे भी तो खुल जाती है किस्मत.
हाँ ! मैंने दी है थाने पर भी रिश्वत,
न देता, कैसे बनता 'पास पोरट' ?
हो रिश्वतखोर या आतंकी,नक्सल,
वे दुश्मन देश के है यह हकीक़त.
''गयाराम'', आ गया सत्ता की ख़ातिर,
है 'खंडित' 'झाड़' की हर शाख़ आह़त.
बदलते जा रहे पैमाने* देखो, [*मापदंड]
उसे अपनाया जिसमे है सहूलत*. [*सुविधा]
जो चित में जीते, पट में भी न हारे,
इसी का नाम है यारो सियासत.
'यथा' अब 'स्थिति' भाती है क्योंकर?
कभी सुनते थे हरकत में है बरकत.
मोहब्बत का सबक उनसे* भी सीखा, [*शाहजहाँ]
दिलो में लेके जो* आए थे नफ़रत. [*मुग़ल]
है दुश्मन घर में, बाहर भी हमारे,
न संभले गर तो हाथ आयेगी वहशत.
रखा था 'गुप्तता' की जिनको ख़ातिर,
उसी ने बेच डाली है अमानत.
गरीबी की अगर रेखा न होती,
चमकती कैसे नेताओं की किस्मत.
वो PC हो मोबाइल या के टी वी,
नहीं मिलती है अब आँखों को राहत.
फसानो में है गुम, माज़ी के क्यों हम?
ज़माना ले रहा है देखो करवट.
फअल* शैतानी है जबकि हमारे, [*कर्म]
पढ़े जाते है किस पर हम ये लअनत !
ब्लोगिंग पर ही कुछ बकवास कर ले,
जो चल निकले तो मिल जाएगी शोहरत.
mansoorali hashmi
6 comments:
बहुत बेहतरीन!!
वाह कमाल है, एक एक शे'र चुन कर लाये हैं आप.
''गयाराम'', आ गया सत्ता की ख़ातिर,
है 'खंडित' 'झाड़' की हर शाख़ आह़त.
जो चित में जीते,पट में भी न हारे,
इसी का नाम है यारो सियासत.
...जी यही है सियासत.
गरीबी की अगर रेखा न होती,
चमकती कैसे नेताओं की किस्मत.
... बेहतरीन नायाब शेर. वो क्या कहते हैं "हासिले-ग़ज़ल" है.
फसानो में है गुम, माज़ी के क्यों हम?
ज़माना ले रहा है देखो करवट.
... ये तो मेरे दिल की बात है आपने सब को क्यूँ बता दी.
sach me behatareen
kunwar ji,
sach me behtareen...
kunwar ji,
murtaza vakil said:
show details 3:50 PM (45 minutes ago)
Dear mansoor bhai it is ultimate poem writen by you :
dil ki baat to ye hai ki "SHARM KYA CHEEZ HAI UNKE LIYE TO,
WOH PAISE JEETE HAI HAARI HAI CRICKET "
your MURTAZA with regard.
गरीबी की अगर रेखा न होती,
चमकती कैसे नेताओं की किस्मत.
भाई जान...सुभान अल्लाह ...बेहतरीन ग़ज़ल कही है...आज के ताज़े हालात भी झांकते नज़र आते हैं इसमें...बहुत खूब जनाब...वाह..
नीरज
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