नुस्ख़ा
'अमर' बन, इस्तीफा देकर गुज़र जा.
बदल ले भेष*, ग़ालिब कह गए है,
तू खुद अपना ही तो 'कल्याण' कर जा.
'नदी' की 'त'रह बहना खुश नसीबी, [N D T]
तकाज़ा उम्र का लेकिन ठहर जा.
करे 'आशा'ए तेरी 'राम' पूरी,
ज़रा तू 'लालसाओं' से उभर जा.
*भेष= पार्टी
-मंसूर अली हाशमी
4 comments:
वाह क्या बात है, बहुत सुंदर जी
करे 'आशा'ए तेरी 'राम' पूरी,
-बहुत सही!!
क्या बात है मंसूर भाई...वाह...क्या लपेट लपेट के मारा है कमबख्तों को....लाजवाब...
नीरज
दो लाइन में सटीक बात.
सुन ले सभी.
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