लेखा-जोखा
फिर नए साल ने दस्तक दी है,
सर्द झोंको ने भी कसकर दी है.
अपनी तकदीर हमें लिखना है,
कोरे सफ्हात की पुस्तक दी है.
बा मुरादों ने दुआए दी तो,
ना मुरादों ने छक कर पी है.
'तेल-आंगन' से न निकला फिर भी,
हाद्सातों ने तो करवट ली है.
बर्फ की तरह पिघलती क़द्रें,*
संस्कारों से जो नफरत की है.
ना मुरादों की खुदा ख़ैर करे,
बा मुरादों ने तो बरकत ली है.
'शिब्बू, 'सौ रन' भी बना ही लेंगे,
कसमें खाने की जो किस्मत ली है.
गर्म* को सर्द बनाने वाले,
'कोप'* भाजन हुए, मोहलत ली है.
telangana
कद्रें= मूल्य, गर्म=ग्लोबल वार्मिंग, कोप= कोपनहेगन.
-मंसूर अली हाशमी
2 comments:
आपको नववर्ष की हार्दिक शुभ कामनाये !
आपके और आपके परिवार के लिए नववर्ष मंगलमय हो !!
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