सच्चा झूठ
एक बत्ती कनेक्शन दिए है,
जिनके घर में न जलते दीये है.
चाक कपडे, फटे पाँव लेकिन,
होंठ हमने मगर सी लिए है.
हम न सुकरात बन पाए लेकिन,
ज़हर के घूँट तो पी लिए है.
सच की सूली पे चढ़ के भी देखा,
मरते-मरते मगर जी लिए है.
हाथ सूँघों हमारे ऐ लोगों,
हमरे पुरखो ने भी 'घी' पिये है.
'सच्चे-झूठो' की हमने कदर की,
'कुछ' मिला है तो 'कुछ' तो दिए है.
-मंसूर अली हाश्मी
4 comments:
कुछ मिला है जब बहुत कुछ दिया है।
अच्छी रचना
बहुत बढिया रचना ... सच्चा झूठ।
जिंदगी को करीब से दिखाती गजल कही है आपने, मुबारकबाद कुबूल फरमाएँ।
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जादू की छड़ी चाहिए?
नाज्का रेखाएँ कौन सी बला हैं?
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