Sunday, April 12, 2009

A True Lie/सच्चा झूठ

सच्चा झूठ

एक बत्ती कनेक्शन दिए है,
जिनके घर में न जलते दीये है.

चाक कपडे, फटे पाँव लेकिन,
होंठ हमने मगर सी लिए है.

हम न सुकरात बन पाए लेकिन,
ज़हर के घूँट तो पी लिए है.

सच की सूली पे चढ़ के भी देखा,
मरते-मरते मगर जी लिए है.

हाथ सूँघों हमारे ऐ लोगों,
हमरे पुरखो ने भी 'घी' पिये है.

'सच्चे-झूठो' की हमने कदर की,
'कुछ' मिला है तो 'कुछ' तो दिए है.

-मंसूर अली हाश्मी

4 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

कुछ मिला है जब बहुत कुछ दिया है।

अच्छी रचना

दिनेशराय द्विवेदी said...
This comment has been removed by the author.
संगीता पुरी said...

बहुत बढिया रचना ... सच्‍चा झूठ।

Science Bloggers Association said...

जिंदगी को करीब से दिखाती गजल कही है आपने, मुबारकबाद कुबूल फरमाएँ।
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जादू की छड़ी चाहिए?
नाज्का रेखाएँ कौन सी बला हैं?