Friday, April 24, 2009

Untold...!

रिहाई के बाद- वरूण 

# होश में ही बक रहा हूँ, सुन लो अब,

लाल गुदरी का हूँ, मैं लाला नही हूँ।*


* [बक रहाहूँ जुनूँ में क्या-क्या कुछ,
कुछ न समझे खुदा करे कोई।]-ग़ालिब


#- मेहरबानी वह भी कांटो पर करूँ?
पाऊँ के ग़ालिब का मैं छाला नही हूँ।*

*कांटो की ज़ुबा सूख गयी प्यास से यारब,
एक आब्ला-ए- पा रहे पुर-खार में आवे।]- ग़ालिब
-मंसूर अली हाश्मी.

2 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

बहुत खूब मंसूर भाई!

shan said...

कमाल का लिखते हैं आप पहली बार आपको पढ़ा बहुत उंमदा