उड़ती हुई गाली
निशाना चूक कर भी जीत जाना,
अजब अंदाज़ है तेरा ज़माना.
चलन वैसे रहा है ये पुराना,
मसल तब ही बनी है ''जूते खाना''.
बढ़ी है बात अब शब्दों से आगे,
अरे Sir ! अपने सिर को तो बचाना.
कभी थे ताज ज़ीनत म्यूजियम की,
अभी जूतों का भी देखा सजाना.
कभी इज्ज़त से पहनाते थे जिसको#,
बढ़ी रफ़्तार तो सीखा उडाना.
शरम से पानी हो जाते थे पहले,
अभी तो हमने देखा मुस्कुराना.
# जूतों का हार बना कर
-मंसूर अली हाशमी
8 comments:
बहुत खूब!
जो शौक हो ताज का तो
पहले जूते खाना सीक लो
bahut khoob
वाह उस्ताद वाह।दिल जीत लिया आपने॥
बहुत बढिया लिखा ...
वाह मंसूर जी वाह!
joote khaanaa
khakar bataanaa
kyon maare kah paanaa
kah kah lajaanaa
fir kahkahe lagaanaa
aaj aam baat hai
aji dekhiyega
log thukenge muh par
aur beshrm kahenge
security badhaanaa
यहाँ भी गैरहाजिर
शरम से पानी हो जाते थे पहले,
अभी तो हमने देखा मुस्कुराना.
-जमाना आ रहा है जब न पड़े तो रोयेंगे ये!!
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