रिहाई के बाद- वरूण
# होश में ही बक रहा हूँ, सुन लो अब,
लाल गुदरी का हूँ, मैं लाला नही हूँ।*
* [बक रहाहूँ जुनूँ में क्या-क्या कुछ,
कुछ न समझे खुदा करे कोई।]-ग़ालिब
#- मेहरबानी वह भी कांटो पर करूँ?
पाऊँ के ग़ालिब का मैं छाला नही हूँ।*
*कांटो की ज़ुबा सूख गयी प्यास से यारब,
एक आब्ला-ए- पा रहे पुर-खार में आवे।]- ग़ालिब
-मंसूर अली हाश्मी.
2 comments:
बहुत खूब मंसूर भाई!
कमाल का लिखते हैं आप पहली बार आपको पढ़ा बहुत उंमदा
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