Friday, March 13, 2009

आत्म घात्

आत्म घात् !


ख़ामोश दिवाली देख चुके, अब सूखी होली खेलेंगे,
हुक्मराँ हमारे जो चाहे, वैसी ही बोली बोलेंगे।
वारिस हम थे संस्कारो के,विरसे में मिले त्यौहारो के,
वन काट चुके, जल रेल चुके, किसके ऊपर क्या ठेलेंगे ।

-मंसूर अली हाशमी 












5 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

बहुत बहुत बहुत सुंदर! सूखी होली और खामोश दिवाली अब मजबूरी बनने जा रही है।

Anil Pusadkar said...

बहुत सही कहा आपने।यही हो रहा है हुक्मरानों की ही बोली बोली जा रही है,

Udan Tashtari said...

अब इल्जाम थोपने के सिवाय बचा क्या है??

संगीता पुरी said...

बिल्‍कुल सही कहा ...

Anonymous said...

jay ho kah ke ab ham
slum dog kahlaayenge

the murakh pahle hi ham
angrejo ke baad
ab fir vyaapaariyo me bik jaayenge

paani paani kiyaa karenge
jal maafiya bhi ban jaayenge

bechi jameene , beche jangal
naukri ke naam insaan bik jaayenge

kyaa kahi khoob aapne
baate kahne ko
ham tum bhi to bach naa paayenge