पालतू कुत्ते का काटा माफ़ है,
इस तरह का आजकल इन्साफ है.
कसमे,वादे, झूठ, धोखा, बे-रुख़ी ,
लीडरी के सारे ये औसाफ* है.
है बहुत अंधेर की गर्दी यहाँ,
आजकल बिजली यहाँ पर आँफ है।
इसलिए हालात काबू में नही,
कम कमाई में अधिक इसराफ़* है.
धर्म के हीरो अमल में है सिफर,
बौने क़द भी लग रहे जिराफ है.
जिनकी सूरत और सीरत नेक है,
आईने की तरह वो शफ़्फ़ाफ़ है।
#ज़र्फ़ की इतनी कमी पहले न थी,
बर्फ से भी तुल रही अस्नाफ* है.
[#अन्तिम शेर निम्न शेर से प्रेरित है:-
'यही मअयारे* तिजारत है तो कल का ताजिर
बर्फ़ के बाँट लिये धूप में बैठा होगा।'
*स्तर
*औसाफ़= विशिष्टताएं, इसराफ़=फ़िज़ुल-ख़र्ची, अस्नाफ़=वस्तुएं
-मंसूर अली हाशमी
6 comments:
ग़ुस्सा बिल्कुल जायज़ है!
बहुत ही शानदार। हकीकत का बयान बडी ही नफासत भरी बेबाकी से। बलिहारी हाशमीजी।
सच सच-उम्दा बयानी.
वाह वाह वाह क्या खूब लिखते हैं हाशमी साहब
वाह वाह वाह क्या खूब लिखते हैं हाशमी साहब
जिनकी सूरत और सीरत नेक है,
आईने की तरह वो शफ़्फ़ाफ़ है।
खूबसूरत कहन है साहिब !
हिन्द युग्म पर मेरी गज़ल पर टिपण्णी हेतु आभार।
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सस्नेह
श्यामसखा‘श्याम
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