Friday, February 6, 2009

New Age

नया ज़माना 

पालतू कुत्ते का काटा माफ़ है,
इस तरह का आजकल इन्साफ है.


कसमे,वादे, झूठ, धोखा, बे-रुख़ी ,
लीडरी के सारे ये औसाफ* है.


है बहुत अंधेर की गर्दी यहाँ,
आजकल बिजली यहाँ पर आँफ है।


इसलिए हालात काबू में नही,
कम कमाई में अधिक इसराफ़* है.


धर्म के हीरो अमल में है सिफर,
बौने क़द भी लग रहे जिराफ है.


जिनकी सूरत और सीरत नेक है,
आईने की तरह वो शफ़्फ़ाफ़ है।


#ज़र्फ़ की इतनी कमी पहले न थी,
बर्फ से भी तुल रही अस्नाफ* है.




[#अन्तिम शेर निम्न शेर से प्रेरित है:-
'यही मअयारे* तिजारत है तो कल का ताजिर
बर्फ़ के बाँट लिये धूप में बैठा होगा।'
*स्तर 


*औसाफ़= विशिष्टताएं, इसराफ़=फ़िज़ुल-ख़र्ची, अस्नाफ़=वस्तुएं
-मंसूर अली हाशमी      

6 comments:

Vinay said...

ग़ुस्सा बिल्कुल जायज़ है!

विष्णु बैरागी said...

बहुत ही शानदार। हकीकत का बयान बडी ही नफासत भरी बेबाकी से। बलिहारी हाशमीजी।

Udan Tashtari said...

सच सच-उम्दा बयानी.

Prakash Badal said...

वाह वाह वाह क्या खूब लिखते हैं हाशमी साहब

Prakash Badal said...

वाह वाह वाह क्या खूब लिखते हैं हाशमी साहब

gazalkbahane said...

जिनकी सूरत और सीरत नेक है,
आईने की तरह वो शफ़्फ़ाफ़ है।

खूबसूरत कहन है साहिब !
हिन्द युग्म पर मेरी गज़ल पर टिपण्णी हेतु आभार।

कविता या गज़ल में हेतु मेरे ब्लॉग पर ्सादर आमंत्रनण है आपको
http://gazalkbahane.blogspot.com/ कम से कम दो गज़ल [वज्न सहित] हर सप्ताह
http:/katha-kavita.blogspot.com/ दो छंद मुक्त कविता हर सप्ताह कभी-कभी लघु-कथा या कथा का छौंक भी मिलेगा
सस्नेह
श्यामसखा‘श्याम