Sunday, September 28, 2014

'लव-जिहादी' में हम भी शामिल है !

'लव-जिहादी' में हम भी शामिल है !

अब जो वो ख़ुद हुए मुख़ातिब है 
अब ग़ज़ल की ज़मीं मुनासिब है। 

फ़ूल भी फेसबुक पे भेजे है ,
कर दूँ 'like' ये मुझ पे वाजिब है। 

फ़ोन 'स्मार्ट'  भी लिया हमने
'व्हाट्स-एपी' भी अब तो लाज़िम है !

बात मिलने की ! बस नही करते   
'On line' ही 'सब कुछ' हासिल है !

रोज़ तस्वीर वो बदलते है 
हर अदा  उसकी यारों ज़ालिम है। 

शेर लिखने लगी है वो भी अब 
मानती हमको 'चाचा ग़ालिब' है !!!
    
--मंसूर अली हाशमी 

Friday, September 12, 2014

मुफ्त की सलाह

मुफ्त की सलाह

#  मिला है तुझ को चांस तो भविष्य अब सुधार ले
हज़म हैं माले मुफ्त तो भले से न डकार ले.

#  जिहाद  और प्यार  में उचित है सारे क्रत्य गर, 
हो मारना ही शर्त तो, तू ख्वाहिशों को मार ले.

#  है अस्मिता की फिक्र गर तो कब्र से निकाल कर
हवाले कर चिता के: 'जोधा बाई' को, तू तार ले.

#  जो राजनीति; बे स्वाद हो रही है, मित्र गर
बढ़ाने उसका ज़ायका, तू धर्म का अचार ले.

#  'बुलेट' को 'ट्रेन' में बदलना है ज़रूरी अब
थमे न देश की गति भले से तू उधार ले. 

#  धरम जनों की संख्या,… बढ़ाना हो अवश्य गर,
 बजाये एक ही के; कर, तू भी चार-चार ले.

#  विद्वेष में  जो पल रहा वो नर्क की ख़ुराक है
 अंत 'टेररिसट' का, है गर कोई तो नार* है. 

* जहन्नुम 

mansoor ali hashmi 

Monday, August 25, 2014

'कुर्सी' चौसर की गोट होने लगी !





'कुर्सी' चौसर की गोट होने लगी !

जब 'चढ़ावों' की नोंध* होने लगी !         *संज्ञान 
आस्थाओं पे चोट होने लगी 

बढ़ती रहने में हर्ज ही क्या है ?
'पापुलेशन' जो 'वोट' होने लगी !

बात अब 'सौ टके' की कैसे करे ?
जब असल ही में खोट होने लगी !

जिसने कुर्सी से लग्न करवाया 
वो ही महंगाई सौत होने लगी !

जब से 'गंगा नहा लिए' है वो 
आरज़ूओं की मौत होने लगी !

 अपनी 'हूटिंग' से बौखलाए है 
'भीड़' तब्दीले  'वोट' होने लगी 

संहिता थी कभी 'आचारों' की 
'गांधी-तस्वीर' नोट होने लगी ! 

-- mansoor ali hashmi 

Monday, July 14, 2014

बात अच्छे दिनों की क्यों न करे ?



बात अच्छे दिनों की क्यों न करे ?
दिलरुबा, कमसिनों की क्यों न करे !

'जादू'* उसका तो चल नहीं पाया              *[महंगाई पर] 
बात 'दीपक', 'जिनों' की क्यों न करे ?

वो है 'उम्मीद' से कि आएंगे 
सब्र हम कुछ 'दिनों' का क्यों न करे?

'उसका' सीना बड़ा 'कुशादा'* है                     *[चौड़ा] 
बात फिर 'रॉबिनो' सी क्यों न करे ? 
 
'कुफ्र'* की आँधियाँ है ज़ोरों पर             *[नास्तिकता] 
बात फिर मुअमिनों की क्यों न करे ? 

अब भी 'सीता' ही शक के घेरे में 
ज़िक्र फिर 'धोबिनों' का क्यों न करे ?
--मंसूर अली हाश्मी  

Monday, June 30, 2014

बहुत कठिन है……।

बहुत कठिन है……।  

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वेरी डिफिकल्ट ,
डगर ऑफ़ पनघट। 

सर पे गगरिया,
नयन तेरे नटखट। 

न आ जाए 'कान्हा'
सरक ले ; तू सरपट। 

है सैंय्या दरोगा 
न करना तू if - but 

Less डिफीकल्ट,
जो काम करे झट-पट

-मंसूर अली हाश्मी 

लिखा है कुछ, पढ़त क्या है !

लिखा है कुछ, पढ़त क्या है !

सही क्या है? ग़लत क्या है ? 
उलट हक़ तो पुलट क्या है !

भले दिन की उम्मीदें है ?
सितारों की जुगत क्या है ??

नतीजे 'फिक्स' होते है 
खिलाड़ी क्या, रमत क्या है !

फुगावा* है उम्मीदों का           *inflation 
ये घाटे का बजट क्या है। 

धुंधलका अपनी आँखों का 
ये 'ओज़ोनी' परत क्या है
'हमीं' पर्यावरण अपना 
खुद अपने से लड़त क्या है ?

'नहीं' में से तो उपजा है 
भरम है! ये जगत क्या है। 

--मंसूर अली हाश्मी 

Sunday, June 29, 2014

राजनीति में सभी खपने लगे !

राजनीति में सभी खपने लगे !

भक्त को भगवन बना जपने लगे 
खुद है भगवन जाप फिर रटने लगे 

'संस्कार' अंतिम ही उसको जानिये  
'अच्छी' बातें 'गंदी' जब लगने लगे  

कर्ण-प्रिय वाणी थी और अमृत वचन   
अब तो हर-हर शब्द में हगने लगे 

संत में आसक्तियां जगने लगी 
आस्थाओं के दिये बुझने लगे  

मांगे बिन ही जब मुरादें मिल गयी !
'साँई'  उनको ग़ैर अब लगने लगे 

'शून्य' से निर्मित हुई है कायनात 
खोज फिर उस 'शून्य' की करने लगे !

 --मंसूर अली हाश्मी   

फिर 'Define' संस्कृति करने लगे !


फिर 'Define' संस्कृति करने लगे !

'काजल कुमारजी के कार्टून और उस पर आयी टिप्पणियों से प्रेरित हो कर :
(https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10203338300033754&set=a.1134674802573.2021780.1098392331&type=1&theater)





'गन्दी बातें' अच्छी जब लगने लगे 
ज़ात ख़ुद की ख़ुद को ही जंचने लगे 

नींद के औक़ात जब घटने लगे 
आसमाँ के तारे तब गिनने लगे 

क़द बढ़े और अंग भी बढ़ने लगे 
तंग हो, कपडे भी जब फटने लगे 

'पीरियड' ! में पेट में दुखने लगे 
मन पढ़ाई में भी, कम लगने लगे  

'वात्स्यायन' पढ़ने का, मन हो मगर 
योग-आसन का सबक़ मिलने लगे 

'हर्ष' में वर्धन' भला अब कैसे हो ?
'ज्ञान' से 'विज्ञानी' भी डरने लगे ?? 
http://mansooralihashmi.blogspot.in

-- mansoor ali hashmi 

Friday, June 27, 2014

आस हम भी लगाए बैठे है !

आस हम भी लगाए बैठे है !

गालियाँ बदमज़ाक़ देते है 
ख़ुश्मज़ाक़ हाथो-हाथ लेते है। 

चित्र, सुन्दर लगा के* दाद तलब            [ *FB  पर ] 
खूब 'Like' जुटाएं बैठे है। 
'मर्दुए' भी ज़नाना वेषों में 
मजनूओं को रिझाए रहते है।  

'फेंकने' वाले, इत्मीनान से है 
'झेलू' अब तक उसे लपेटे है !

'चाय' की अब दूकान बंद हुई 
खाली कप है; फ़ूटी प्लेटें  है। 





{ग़ज़ल का एक शेर :
हाथ उठा कर जो ली है अंगड़ाई 
कितने दिल उसने यूं समेटे है !}

'पाँव-भाजी'  है 'आम' लोग अब तो
'हाशमी' भी 'चने-बटेटे' है !   

-- मंसूर अली हाशमी 
 

Friday, June 13, 2014

हो गया Bounce धर्मनिर्पेक्षता का चैक है !!

हो गया Bounce धर्मनिर्पेक्षता का चैक है !


क्या बताएं आशिक़ों-माशूक़ दोनों एक है 
आईने के सामने दिलबर खड़ा दिलफेंक है !

डाल कर तस्वीर दिलकश, दिल चुराए नेट पर 
Facebook पर हो रहे 'खाते' हमारे 'Hack' है। 

फेसबुक पर पंडित-ओ-मुल्ला है, बंधु, शेख भी 
फितरती है कौन इन में, कौन इन में नेक है  ?


'वास्ता' हो या 'वज़न',कुछ तो यहाँ दरकार है 
काम हो जाता है आसाँ , लग गया गर jack है। 

इन्तेज़ारो-आरज़ू में कट गए है 'चार दिन'
पूरी मुद्दत हो चुकी, सामान अपना 'पैक' है !

'फेंकू-फेंकू' कह के शक्ति में इज़ाफ़ा कर दिया 
फिंक गए सारे बिचारे, 'वह' तो 'ऑवर टेक' है !  

--mansoor ali hashmi