Monday, June 30, 2014

लिखा है कुछ, पढ़त क्या है !

लिखा है कुछ, पढ़त क्या है !

सही क्या है? ग़लत क्या है ? 
उलट हक़ तो पुलट क्या है !

भले दिन की उम्मीदें है ?
सितारों की जुगत क्या है ??

नतीजे 'फिक्स' होते है 
खिलाड़ी क्या, रमत क्या है !

फुगावा* है उम्मीदों का           *inflation 
ये घाटे का बजट क्या है। 

धुंधलका अपनी आँखों का 
ये 'ओज़ोनी' परत क्या है
'हमीं' पर्यावरण अपना 
खुद अपने से लड़त क्या है ?

'नहीं' में से तो उपजा है 
भरम है! ये जगत क्या है। 

--मंसूर अली हाश्मी 

Sunday, June 29, 2014

राजनीति में सभी खपने लगे !

राजनीति में सभी खपने लगे !

भक्त को भगवन बना जपने लगे 
खुद है भगवन जाप फिर रटने लगे 

'संस्कार' अंतिम ही उसको जानिये  
'अच्छी' बातें 'गंदी' जब लगने लगे  

कर्ण-प्रिय वाणी थी और अमृत वचन   
अब तो हर-हर शब्द में हगने लगे 

संत में आसक्तियां जगने लगी 
आस्थाओं के दिये बुझने लगे  

मांगे बिन ही जब मुरादें मिल गयी !
'साँई'  उनको ग़ैर अब लगने लगे 

'शून्य' से निर्मित हुई है कायनात 
खोज फिर उस 'शून्य' की करने लगे !

 --मंसूर अली हाश्मी   

फिर 'Define' संस्कृति करने लगे !


फिर 'Define' संस्कृति करने लगे !

'काजल कुमारजी के कार्टून और उस पर आयी टिप्पणियों से प्रेरित हो कर :
(https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10203338300033754&set=a.1134674802573.2021780.1098392331&type=1&theater)





'गन्दी बातें' अच्छी जब लगने लगे 
ज़ात ख़ुद की ख़ुद को ही जंचने लगे 

नींद के औक़ात जब घटने लगे 
आसमाँ के तारे तब गिनने लगे 

क़द बढ़े और अंग भी बढ़ने लगे 
तंग हो, कपडे भी जब फटने लगे 

'पीरियड' ! में पेट में दुखने लगे 
मन पढ़ाई में भी, कम लगने लगे  

'वात्स्यायन' पढ़ने का, मन हो मगर 
योग-आसन का सबक़ मिलने लगे 

'हर्ष' में वर्धन' भला अब कैसे हो ?
'ज्ञान' से 'विज्ञानी' भी डरने लगे ?? 
http://mansooralihashmi.blogspot.in

-- mansoor ali hashmi 

Friday, June 27, 2014

आस हम भी लगाए बैठे है !

आस हम भी लगाए बैठे है !

गालियाँ बदमज़ाक़ देते है 
ख़ुश्मज़ाक़ हाथो-हाथ लेते है। 

चित्र, सुन्दर लगा के* दाद तलब            [ *FB  पर ] 
खूब 'Like' जुटाएं बैठे है। 
'मर्दुए' भी ज़नाना वेषों में 
मजनूओं को रिझाए रहते है।  

'फेंकने' वाले, इत्मीनान से है 
'झेलू' अब तक उसे लपेटे है !

'चाय' की अब दूकान बंद हुई 
खाली कप है; फ़ूटी प्लेटें  है। 





{ग़ज़ल का एक शेर :
हाथ उठा कर जो ली है अंगड़ाई 
कितने दिल उसने यूं समेटे है !}

'पाँव-भाजी'  है 'आम' लोग अब तो
'हाशमी' भी 'चने-बटेटे' है !   

-- मंसूर अली हाशमी 
 

Friday, June 13, 2014

हो गया Bounce धर्मनिर्पेक्षता का चैक है !!

हो गया Bounce धर्मनिर्पेक्षता का चैक है !


क्या बताएं आशिक़ों-माशूक़ दोनों एक है 
आईने के सामने दिलबर खड़ा दिलफेंक है !

डाल कर तस्वीर दिलकश, दिल चुराए नेट पर 
Facebook पर हो रहे 'खाते' हमारे 'Hack' है। 

फेसबुक पर पंडित-ओ-मुल्ला है, बंधु, शेख भी 
फितरती है कौन इन में, कौन इन में नेक है  ?


'वास्ता' हो या 'वज़न',कुछ तो यहाँ दरकार है 
काम हो जाता है आसाँ , लग गया गर jack है। 

इन्तेज़ारो-आरज़ू में कट गए है 'चार दिन'
पूरी मुद्दत हो चुकी, सामान अपना 'पैक' है !

'फेंकू-फेंकू' कह के शक्ति में इज़ाफ़ा कर दिया 
फिंक गए सारे बिचारे, 'वह' तो 'ऑवर टेक' है !  

--mansoor ali hashmi 

Sunday, June 8, 2014

डरते थे जिनसे वो ही हवलदार हो गया !

डरते थे जिनसे वो ही हवलदार हो गया !






नेता को छींक आयी; लो ! अखबार हो गया,
पी चाय; फिर से सोने को तैय्यार हो गया। 

'गुड मॉर्निंग', प्रणाम से, 'गुड नाइ-ट' तलक   
अब 'फेसबुक' ही देखिये संसार हो गया।

टी. आर. पी. बढ़ी है तो चैनल हुए निहाल 
अब तो 'बलात कार' भी व्यापार हो गया।    

सेंसेक्स उछला, रूपये की औक़ात भी बढ़ी,
मरियल जो कल तलक था वो दमदार हो गया। 

'विकटे' गिरा के यू. पी. की अच्छी रही फसल, 
'पुणे' अब 'महाराष्ट्र' का बाज़ार* हो गया !           

*जय 'बहुसंख्यकवाद'        
Note: {Pictures have been used for educational and non profit activies. If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture. 
 --मन्सूर अली हाशमी 

Monday, May 5, 2014

फेसबुक एक नकली किताब !

फेसबुक पर 10 करोड़  fake accounts है - एक खबर)

फेसबुक एक नकली किताब !

#  ख़ूबसूरत बला की है आप

$  आप भी कम नही है जनाब.

#  शुक्रिया,  मेरी बीवी भी  है

$  मेरे मिस्टर  भी है लाजवाब.

#  Facebook  पर है किस की तलाश ?

$  Kiss ?  हम को शरमाओ न भाईसाब !

#  चल दिये फिर तो,  बहना सलाम

$  ओ मुए,  तेरा ख़ाना ख़राब.......

'हाशमी' तू भी  फोटो  बदल 
तब ही हो पायेगा कामयाब ! 
-मंसूर अली हाशमी 

Thursday, May 1, 2014

गुदगुदी


गुदगुदी - गुदगुदी - गुदगुदी!

'राय'  उनको भी अब मिल गयी
बाँटते रहते थे जो कभी.
पोलें खोळी थी जिसने  बहुत
'पोल' उसकी भी लो अब खुली.

फूल * कांटा बने न कहीं              (*कमल का)
ऊंगलीयाँ * खुद की दुशमन बनी.      (*मोदी की)

'बाबा'  - "हनी"  पे अब "मौन"  है!
'योग'  'संयोग' मे है ठनी.

है दिवस आज मज़दूर का
छुट्टी  पहचान इसकी बनी!

'रागे पण्डित' पे खामौश शैर*       (*कशमीर के)
खुद पे आयी तो चुप्पी लगी!

'राखी- प्रियंका -  उमा' भी है,
इनपे भी कुछ लिखो 'हाशमी'.

-मंसूर अली हाशमी


Monday, April 28, 2014

Casting Vote - Duty of Democracy

Wednesday, April 9, 2014

चुनाव, लोकतंत्र की अज़ान* है

चुनाव, लोकतंत्र की अज़ान*  है      *Call / पुकार  

हर एक को ये गुमान है,
कि बस वही महान है। 

'वज़ीर जिसका "शाह" हो,
उसे तो इत्मीनान है। 

हो 'साहब' मेहरबान तो ,
गधा भी पहलवान है। 

है खून दाढ़ में लगा,
फंसी उसी की जान है 

वजूद इनका गर कोई,
तो सिर्फ एक 'निशान'* है       
[*चुनावी]

ये घोषणा के पत्र भी, 
छलावे ही का दान है । 

है मौल-भाव भी यहाँ,
धरम भी अब दुकान है।  

है सच क्यों पस्त-पस्त आज,
औ[र] झूठ पर उठान है ?

बने वो 'भूत' फिर रहे !
न 'शोले' है न 'शान' है। 

कहाँ है सादा लोह लोग 
ये क्या वहीं जहान है ?

यहाँ पे आदमियत अब,
पड़ी लहू-लुहान है। 

कि अब यहाँ तो जान ही ,
किसान का लगान है। 
http://mansooralihashmi.blogspot.in