Monday, August 19, 2013

कब खेल रुकेगा गन्दा !


आत्म-मंथन की २५० वीं पोस्ट पर 'टुंडा' आ बैठा है, ख़ुदा ख़ैर करे !





कब खेल रुकेगा गन्दा !

अब हाथ लगा है 'टुंडा',
बरसो-बरस तक ढूँढा. 

भर गया है इसका हंडा ,
फूटेगा पाप का भंडा.  

जब लगेगा इसको डंडा,
होवेगा जोश भी ठंडा.

'नापाक' समझ कर फेंका*,                *'पाक' ने  
हो गया जो बूढ़ा 'मुण्डा'.  
'दाऊद' से छोटा  गुंडा,
तैयार करो फिर फंदा. 

डॉलर सर पर चढ़ बैठा,
व्यापार हुआ है मंदा.

मौसम 'चुनाव' का आया,
फिर करो इकट्ठा चन्दा.   

अब अगले साल में देखो,
फहराता कौन है झंडा ! 

रक्षा-बंधन के पावन पर्व की हार्दिक बधाई। 
--mansoor ali hashmi 

Saturday, August 17, 2013

हमने तो ये देखा है !


[सभी ब्लॉगर साथियों एवं देश वासियों को रक्षाबंधन के पवित्र पर्व की हार्दिक बधाई]
हमने तो ये देखा है !

गड़बड़ का अंदेशा है,
रुत का ये संदेशा है. 

बिकने* को तैय्यार है ये,                        *[ Horse Trading]
राजनीत इक पेशा है. 

'रूप' इसका क'या' खोटा है?
'गिरता' क्यों हमेशा है !   









'बुक' जब 'फेस' हुवा है तो 
क्यों ये ज़ुल्फ़ परेशा है !

'बंधन' जो है 'रक्षा' का,
एक सूत का रेशा है. 







 

'जूए शीर'* ये लाएगा,                     *[दूध की नहर]  
कोहकनी* ये तेशा* है.

*कोहकनी = फरहाद का , 
* तेशा = बढ़ई का औज़ार    

Note: {Pictures have been used for educational and non profit activies. If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture.
--mansoor ali hashmi 

Friday, August 16, 2013

जो 'मीठा' तो गप-गप, है 'थूं-थूं जो 'खट्टा !


जो 'मीठा' तो गप-गप, है 'थूं-थूं जो 'खट्टा !   

ये 'मोदी' ने फेंका* है 'पंजे' पे छक्का,          *PM  के भाषण पर 
कोई कहता कच्चा, कोई कहता पक्का . 

है 'वाचाल' कोई तो 'खामोश' बच्चा !
है 'उद्दंडता' कि जमा खूँ का 'थक्का' ?

बने आज का दिन* पुनर्जन्म जैसा,         *[स्वतंत्रता-दिवस वर्षगाँठ]
सलामत रहे , या ख़ुदा, ज़च्चा-बच्चा.  

न 'शिक्षा' न 'संस्कार' की है ज़रूरत,
वही जीतता है, जो है हट्टा-कट्टा !

'खनन' पर, 'ज़मीं' पर तो 'दंगो' को लेकर,
'सदन' में तो जारी है बस लट्ठम-लट्ठा !

'फुद्बिल', एफडीआई, 'नारी आरक्षण',
अभी पक  रहे है, न रह जाये कच्चा !  

लदे तो है 'बेलो'* पे अंगूर ढेरों ,           *[आगामी चुनाव रूपी]
मिले तो है मीठे, न पाए तो खट्टा . 

ये है लोक-तंतर, बुरा न लगाना, 
जो कहदे तुम्हे कोई 'उल्लू' का पट्ठा !   

--mansoor ali hashmi

Wednesday, August 14, 2013

नज़र आ रहा हर कोई हक़्क़ा-बक़्क़ा !


[सभी बलागर साथियो , भारतवासियों को ६७ वें स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई।]
नज़र आ रहा हर कोई हक़्क़ा-बक़्क़ा !  

'वो-डरा'*  हुआ तो नहीं लगा,                *[रोबर्ट]
बड़ा 'नेता' उसका कोई 'सगा' !

ये ज़मीनी सौदों के मामले, 
मेरा मुल्क इससे रहा ठगा. 

जो 'कलश'* लिए था निकल पड़ा,     *चेन्नई एक्सप्रेस 
ले के १०० करोड़ भी न रुका !
**
जो 'शतक' की और है बढ़ रहा,
वो 'प्याज़' हमको गया रुला. 

जो कि'डूबना' ही तो था 'मदार'*           *[काम/function,पर आधारित]
इसे* कौन काम लगा गया ???              *[INS सिन्धु पनडुब्बी को]

है 'चुनोती'* बोल के देखिये,                 *[मोदी की]
फतह* कौन करता यहाँ किला .               *[स्वतंत्रता दिवस के भाषण में]

--mansoor ali hashmi 

Friday, August 9, 2013

पॉलिसी में अपनी तो ग़ज़ब की ही लचक है !


पॉलिसी में अपनी तो ग़ज़ब की ही लचक है !

सड़को पे है गड्डे या कि गड्डों में सड़क है,
ठेकों के सभी काम तो होते बे धड़क है. 

पैमाना-ए-रिश्वत यहाँ तय होता सड़क से,
होगा नमक आटे में कि आटे में नमक है !    

डालर ने बिगाड़ी है दशा रूपये की जबसे,
गुज़री है 'चवन्नी', मंद सिक्को की खनक है. 




बर आयी 'मुरादे' तो 'रज़ा' की दरे 'शिव'* पर,                *[शिवराज सिंह चौहान] 
'Modi'fication, उनका भी हो, जो अब भी कड़क है. 

'दुश्मन' हो कि 'आतंकी', सुरक्षित नहीं Border,
अपनों ही के हाथो हुई इज्ज़त की हतक है.  

--mansoor ali hashmi 

Wednesday, July 10, 2013

Party with a Difference !











Party with a Difference !

करते थे बजट पेश अब खुद पेश हुए  है,
मंत्री थे कभी आज वो दरवेश हुए है,
अनैसर्गिक कुकृत्यों के अंजाम में यारों 
दूषित कईं ' मध्य के प्रदेश' * हुए है !     

 *शरीर के वस्ति इलाक़े 

mansoor ali hashmi 

Saturday, July 6, 2013

कैसा यह "घाव" लगा ?





कैसा यह "घाव" लगा ?

'अस्सी' के पार जाके ये अभ्यास किया है,

'नारी' के बिन भी 'काम' का प्रयास किया है,
नारी की अस्मिता की 'हिफाज़त' ही की खातिर,
'हेट्रिक' से ठीक पहले ही 'संन्यास' लिया है. 

'जोरू' तो साथ दे रही; 'ज़र'* तो चला गया !          *[वित्त मंत्रालय]
हाए ! ये अंतिम उम्र में कैसा गज़ब हुआ !!  

-- mansoor ali hashmi 

Tuesday, June 18, 2013

बरसात का क़हर !

बरसात का क़हर !

''श्रम'' , 'चौरासी साला' की उमर में !   
न था बच्चा जवाँ क्या कोई घर में ?
बिना मुंडवाए ही सर; आ गिरा है,
हमारे 'शीश' पर 'ओला', खबर है !





















-- mansoor ali hashmi 

Monday, June 3, 2013

याँ लूट मची है लेले !






याँ लूट मची है लेले !

आ, फिक्सिंग-फिक्सिंग खेले
ख़ुद मारे, ख़ुद ही झेले। 

ये दर्शक तो है गेले*                    *बेंडे 
चीयर-बाला इनपे ठेले . 

'श्रीनि' लगाए मेले,
बेचारे! 'संत'* अकेले.          *श्री संत 

बस कुर्सी छीन न मेरी,
'दामाद' भले ही लेले. 

आ, 'डाल मियाँ' तू अन्दर,
बाहर 'शिर्के', 'जगदाले'

'शशांक' मनोहर लेकिन,
ये 'जेटली' तो शर्मीले!

अब जांच कोई भी करले,
सब भाई है मौसेरे. 

'तू'* कर ले लाख ट्विट पर,          *'ललित मोदी'
हो कौनसे 'दूध-धुलेले' ?

'पावर'* क्यों काम न आया,           *'पंवार' का 
वो भी तो छाछ जलेले. 

अब ख़त्म करो भी झगडा,
मिल-जुल कर सारे खेले. 

--mansoor ali hashmi 

Thursday, March 28, 2013

केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी

केसरिया, लाल, पीला,  नीला, हरा, गुलाबी

यह टाईटल ही तरही का मिसरा था जो इस बार पंकज सुबीर जी ने होली की मुनासिबत से दिया था . इन्होने मेरी रचना को क़बूल किया और "सुबीर संवाद सेवा'' [ http://subeerin.blogspot.in/ ] पर तरही मुशायरे में जगह दी .

'होली' पर कभी कुछ कहने का अवसर ही नही मिला. अनुभवहीनता के आधार पर जो कुछ भी लिख पाया हूँ प्रस्तुत है। 


केसरिया, लाल, पीला,  नीला, हरा, गुलाबी
जिस रंग में तुझको देखा, मन हो गया गुलाबी.
 
अब कौन रंग डालू तू ही ज़रा बतादे 
केसरिया,लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी ?

होली से पहले ही है छायी हुई ख़ुमारी
हर सूं ही दिख रहा है नीला,हरा, गुलाबी.

''केसरियालाल''पीला; क्यूँ होता जा रहा है,
''सेठानी'' पर सजा जब नीला, हरा, गुलाबी.

तअबीर मिल रही है, रुखसार से हया की    
आईना हाथ में और चेहरा तेरा गुलाबी 

केसरिया, लाल, नीला; अब खो रहे चमक है 
सब्ज़ा* हुआ है पीला , 'मोदी' हुआ गुलाबी.            [*हरा]


सच बात तो यह है कि हमारे 'धर्म-निरपेक्ष' देश में होली खेलने का अवसर ही नहीं मिला !  बचपन में अपने बंद मोहल्ले में 'सादे पानी' से ही होली ज़रूर खेली.  क्योंकि दूसरी तरफ 'गंदी होली' [ गंदी इसलिए कि उसमे रंगों के अलावा 'गौबर' और 'गालियाँ' भी शामिल होती थी] खेली जाती थी. बच्चों को प्रदूषण से बचाने का ठेका तो हर समाज लेता ही है ! फिर किशोरावस्था आते-आते हम ज़्यादा अनुशासित हो चुके थे, सो सफ़ेद कपड़े पहन कर होली के दिन भी निर्भीक घूम लिया करते थे- यूं 'दाग-रहित'  रह लिये. जवानी में आर. के. स्टूडियो की होलीयाँ देख-देख कर [चित्रों में], लाड़ टपकाते रहे……….     
 
और अब बुढ़ापे में तो……। 


Mr. & Mrs. Hashmi in 2013.jpg

क्या लाल, कैसा पीला, केसरिया क्या है नीला ? 
सब कुछ हरा लगे है, सावन गया 'गुलाबी' !

''केसरियालाल'' पीला, कुरता भी है फटेला,
'नीला' हरी-भरी है, हर इक अदा गुलाबी.

फिर भी "होलीयाने" की कौशिश कुछ इस तरह की है :-

टकता है छत से बाबू, चेहरे पे है उदासी,
खाए गुलाब जामुन  नीचे गधा गुलाबी. 
पिचकारी छूटती है, किलकारी फूटती है,
ढेंचू का सुर अलापे , देखो गधा गुलाबी.

[ठीक से तो पता तो नही पर होली के दिन गधों को कुछ विशेष महत्व प्राप्त हो जाता है, इसीलिए गधे महाराज की मदद ले ली है कि होली की इस गोष्ठी में शायद प्रविष्टि मिल जाये.


पुनश्च :    नीचे से १४ वीं पंक्ति में 'लार' की जगह "लाड़" टपक गयी है ! कृपया टिस्यू पेपर से साफ़ करले ! धन्यवाद.
 
-mansoor ali hashmi