Monday, September 12, 2011

SILENT CRY


जब भी बोला है सच ही बोला है!

मुंह नहीं उसने अपना खोला है,

उसका चुप रहना ही तो ‘बोला’ है.

दर्द दुनिया का भर लिया दिल में,

हाथ में उसके खाली झोला है.

खाताधारी ‘Swiss’ का बन बैठा,

रत्ती,माशा कभी था, ‘तोला’ है.

आबे ज़मज़म न गंगा जल की तलब,

हाथ में अब तो कोका कोला है.

‘वो’ किसी और को, कोई ‘उसको’,

ठोंकता है सलाम- ‘ठोला’ है. 

मुफ्त का माल, बे रहम हो जा,

फ़िक्र क्या करना? हाजमोला है!

क्यों रसन, दार पर सजी फिर से,

सच ये फिर आज कौन बोला है ?

दोनों जानिब नज़र वो आता है,

झूलता रहता है हिंडोला है !

इन्किलाब अब तो यूं भी आते है,

बन गयी जब भी भीड़ ‘टोला’ है.


 --mansoor ali hashmi 

Sunday, September 11, 2011

FACE BOOK


किताबी चेहरा....!



फेसबुक पर जो खाता खोला है,

गोपियो ने तो धावा बोला है .

मित्र संख्या है अब हज़ारो में,

उम्र उसकी तो  सिर्फ सोलह है.

दोस्ती का नही है अर्थ पता,

सिर्फ हाय, हलो ही बोला है.

उम्र आधी किसी की दुगनी है,

कोई राधा, कोई रमोला है.



बे-बटन शर्ट, शोर्ट पहने है ,    


हाथ में एक बरफ का गोला है.  

“चित्र’ कितना तुम्हारा सुन्दर है”,

लिख के इतना ही बस टटोला है!


Note: {Picture have been used for educational and non profit activies. If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture.}

-मंसूर अली हाश्मी


Thursday, September 1, 2011

SEASON'S GREETINGS


गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर सभी ब्लागर साथियो और देश वासियों को हार्दिक बधाई. 
पटाखा छोड़ा, निकली 'सुरसुरी' है !
लड़ाई ये हमारी ख़ुद से ही है,
ये 'रिश्वत' तो हमी ने दी है, ली है.

मिले जो 'आश्वासन' सब हसीं है,
मगर उसमे भी लगती कुछ कमी है.

बनाया इसको जनता ने सही पर,
ये 'संसद' अब तो उससे भी बड़ी है.

कभी 'टूटा', कभी 'तोड़ा' गया है,
है 'अनशन' तो पुराना, रुत नई है.

वो 'टोपी' जिससे नफरत हो रही थी,
उसे 'अन्ना' की खातिर पहन ली है.

'चतुर्थी', 'ईद', पर्युशन' का मौसम,
अमन है, शान्ति है, ज़िन्दगी है.

न हाकी, रेस, न ही भांगड़ा है,
प्राजी!*, ये घड़ी क्यों रुक गयी है.        *[पंजाब वासी]

सियासत ही में बाज़ी आजमाए,
दिगर खेलो में हारा 'हाशमी' है.

-मंसूर अली हाशमी 

Wednesday, August 31, 2011

Eid Greetings

मुबारक बाद/ बधाईयाँ...


ईद के मुबारक मौक़े पर मुस्लिम भाईयों एवं तमाम देश वासियों को हार्दिक बधाइयां.

आप सबकी एवं देश की प्रगति एवं समृद्धि की शुभ कामनाओं सहित.

आज इस पावन अवसर पर मोबाइल में एक अनोखा दृश्य क़ैद हुआ, जो मैं आप लोगों के साथ शेअर करना चाहता हूँ:



सैफ़ी मोहल्ला, रतलाम स्थित बड़ी मस्जिद के बाहर सुबह के वक़्त ईद की नमाज़ पश्चात जबकि अधिकतर लोग घर लौट  चुके  थे, एक भिखारिन को ड्यूटी पर तैनात पुलिस कर्मियों ने सहृदयता से दान दिया. [उनकी इजाज़त से ही मेने यह तस्वीर खींची  है]  

भिखारिन की मासूमियत पर मुझे बरबस ही प्यार आया, साथ ही पुलिस कर्मियों की उदारता और प्रेम पूर्वक व्यवहार से मन अभीभूत हुआ.

-मंसूर अली हाशमी 

Thursday, August 25, 2011

DIPLOMACY


नए नेता की सूची में तेरा भी नाम है प्यारे !

सियासत जिसको कहते है, इसी का नाम है प्यारे,
कोई 'अन्ना' बना है तो कोई 'गुमनाम' है प्यारे.

बुझे दीपक से नज़रे ही चुराते सबको देखा है,
चमकते 'सूर्य' को करते सभी प्रणाम है प्यारे.

जहां पर चापलूसी, झूठ का ही बोल बाला हो,
शराफत, दोस्ती और वफ़ा नाकाम है प्यारे.

हर एक 'मंसूर' को फांसी चढ़ाने को तुले है वो, 
'गुरुओ' और  'कस्साबो' को तो आराम है प्यारे.



















मोहब्बत दीन है और मोहब्बत ही ख़ुदा ए दोस्त,
जला नफरत के रावण को जो तुझ को 'राम' है प्यारे.

"भ्रष्टाचार मिट जाए" यही है कामना सबकी. 
अभी तो देश में ये ही बड़ा एक काम  है प्यारे . 

Note: {Pictures have been used for educational and non profit activies. 
If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture.}
--mansoor ali hashmi 

Tuesday, August 23, 2011

Whitewashed !


धोए गए कुछ ऐसे कि बस साफ़ हो  गए !

धोए गए बुरी तरह इस मानसून में,
वैसे भी तर-ब-तर* तो थे इस माहे जून में.

[*बहुत सारी जीत और पैसा कमाया था पिछले ही महीने [जून] तक ]

चारो गँवा के बैठ गए अबतो खाली हाथ,
आता नहीं है जोश क्यूँ अब अपने खून में.

एक 'सैंकड़ा' सचिन अगर ले आता साथ में,
ख़ुश होके भूल जाते सभी कुछ  जुनून में.

बल्ले नहीं चले मगर इस बार गेंद भी,
'गोरो' को लग रही थी  Honey जैसी  Moon में.

अपनी अपेक्षाए ही हमको तो 'छल' गई,
हम है कि ढूँढते है उसे कोई  Goon*  में.          *ठग 
 
--mansoor ali hashmi 

Sunday, August 21, 2011

कौन ? आर.एस.एस.! ,C.I.A. !, पाकिस्तान ! OR ...?


कौन ?  आर.एस.एस.! ,C.I.A. !,  पाकिस्तान ! OR ...?

हस्ती को जो अपनी यूं मिटा लेता है यारों,
Unknown को  अण्णा वो बना देता है यारों.

'जन-लोक' अगर बन नहीं पाया है तो हुशियार !
सैलाब वो जन-जन में उठा देता है यारों.

जन भावना राहत में हो, आह़त हो अगर तो,
सरकार बना देता, हटा देता है यारों. 

अब 'राम की लीला' पे है अण्णा को भरोसा,
भ्रष्टो को जो आखिर में सज़ा देता है यारो !
   
--mansoor ali hashmi 

Sunday, August 14, 2011

YAAHOOO !


या....हूँ....
[आज शम्मी कपूर के दुखद निधन पर उन पर लिखे सन २००८ के एक लेख को पुन: प्रस्तुत कर रहा हूँ, श्रद्धांजली स्वरूप:]
( इत्तेफाक से ये 'आत्म-मंथन' पर २०० वीं पोस्ट के क्रम पर प्रकाशित हो रही है.)

Shammi Kapoor





शम्मी कपूर 

एक समय में अरब मुल्को में खासकर लेबनान,जोर्डन ,कुवैत वगेरह में शम्मी कपूर का जादू चलता था। 'जंगली' वाला ज़माना था वह। याहूँ तो यहाँ खूब गूंजा, सिर्फ़ नौजवानों में ही नही सभी तबको में। 'याहूँ'  काल की यादें  आज भी पुराने लोगों के दिलो में स्थापित है। desktop पर पहुँचने वाला याहू भी इसी नस्ल का है, इसका मुझे कोई अंदाज़ नही।

फिर 'तीसरी मन्ज़िल के musical songs ने भी हम से ज़्यादा अरब लोगो  को ही नचाया था। शम्मी कपूर की कद-काठी , रंग-रूप में अरब लोगों को अपने जैसी ही झलक मिलती थी । खासकर तबियत की 'शौखी'  इसको तो ये लोग अपनी ही विरासत समझते है।

शम्मी कबूर [अरबी भाषा में 'प' स्वर के आभाव से बना उच्चारण] का दो दशक तक यहाँ एक छत्र राज कायम रहा।

इन देशो के मूल निवासियों के अतिरिक्त यहाँ बसे हुए एशियन मूल के लोगों का भी बहुत बड़ा योगदान रहा भारतीय रंगकर्मियों और फिल्मो की लोकप्रियता को बढ़ावा देने में।

अब ग्लोबलाइज़ेशन  के दौर में कलाकारों को जो 'मेवा'  खाने मिल रहा है, वह उनकी सेवाओ के मुकाबले में कई गुना ज़्यादा है। भाग्यशाली है आज के अनेक कलाकार!

एक और भारतीय सांस्कृतिक राजदूत 'शम्मी कपूर' को मेरा सलाम।

मंसूर अली हाश्मी [मिस्र से , २०सितम्बर २००८]

Friday, August 12, 2011

Reality


हर जगह मेरा जुनूँ  रुसवा हुआ !

# विष्णु बैरागी ने जब फतवे पे इक 'फ़तवा'* दिया,   *एकोऽहम्अज्ञान का आतंक
   चौंके पंडित और मुल्ला भी अचंभित रह गया.

# हर गली हर मोड़ पर अन्ना पढ़ा, अन्ना सुना,
   भ्रष्ट चेहरों पर मगर आई नज़र मक्कारियां. 

# "खेल ये क्रिकेट हमारा है", बड़ी अच्छी तरह,
   घर बुला कर हमको गौरो ने तो बस समझा दिया.

# दासता से मुक्त गांधी ने अगर करवाया तो,
   मुश्किलों के वक़्त में जे.पी. कभी अन्ना मिला.

# नाम अपने देश का  जग में बहुत चमका दिया,
   कैग [CAG]  कहता है ज़रूरत से अधिक खर्चा किया.


# सबसे ज़्यादा है अगर दौलत तो 'भगवानो' के पास !
   'नास्तिक' तू गुमरही में अब तलक भटका हुआ !!

# भीड़ से बचने को 'आरक्षण' ज़रूरी है अगर,
   क्या हुआ ! मैंने जो अपना आज 'रक्षण' कर लिया? 

# I.A.S. और  I.P.S. , 'प्रदेश' से बढ़ कर नही,
   जो 'गुजरता' जा रहा था क़ैद* क्यूँ उसको किया ?        *Record

-Mansoor ali Hashmi   

Tuesday, August 9, 2011

OPTIMISM !

चल मेरे घोड़े टिक-टिक-टिक..........


'ज्ञानोक्ति' पर मिले कोटेशन से प्रेरित होकर:-


"जब आप सभी सम्भावनायें समाप्त कर चुके हों, तो याद करें - आपने सभी सम्भावनायें समाप्त नहीं की हैं।"
~ थॉमस ऑल्वा एडीसन।


संभावनाए क्षीण है, घोटाले करना छोड़ दे ,
सी-डब्ल्यू , G में जेल तो, 2 G भी भारी फ़ैल है.
करके 'खनन' पाई है अपनी कब्र ही खोदी हुई,

बुझ रहे दीपक सभी बाकी बचा न तेल है,

पढ़ के 'एडिसन' को फिर उम्मीद की जागी किरण,
'लोकपाली' गर बचाले* तो FRONTIER MAIL है.
    *[minus[-] P.M. वाला/ बस कोशिश करके  पी.एम्. बन जाओ ]

Wednesday, August 3, 2011

NON-SENSE !


बे-बात  की बात!


'कल' तो 'माज़ी' हो गया है, आज की तू बात कर,            [ माज़ी को अरबी में 'मादी' भी पढ़ते है] 
'येद्दु' से मुक्ति मिली, 'कस्साब' पर अब घात् कर.


करना क्यूँ 'अनशन' पड़े ? रफ़्तार टूटे देश की,
जन का हित जिसमे हो एसा 'लोकपाली' पास कर.

'PUT' को 'पट' पढ़ना नही और 'BUT' को बुत न बोलना,
 है  poor इंग्लिश तो प्यारे, हिंदी ही में Talk कर.

हारने* के वास्ते अब यूं चुना अँगरेज़ को!                 *[क्रिकेट में]
अब चुका सकते 'लगां' हम नोट ख़ुद ही छाप कर!!

'ग़र्क' होने से बचा, 'Obama'  उसका देश भी,
एक कर्ज़ा फिर मिला, इक और फिर 'Default'  कर!

इक 'शकुन्तल' रच रहे है, बनके 'कालीदास'*  फिर,       *[आज के राजनेता]
जिसपे बैठे है उसी डाली को ख़ुद ही काट कर.

पहले 'क़ासिद' को बिठाते सर पे थे आशिक मियाँ!
काम [com] अब करवा रहे है देखो उसको डांट [dot] कर. 
--mansoor ali hashmi 

Tuesday, July 19, 2011

ढूँदते-ढूँदते.....

             [ समीर लाल जी के लेख ......   स्पेस- एक तलाश!!!!   से प्रेरित होकर....]

ढूँदते-ढूँदते......

पत्थरों का शहर, पत्थरों के है घर,
तंग रस्ते यहाँ, आदमी तंग नज़र,
हम भी पहुंचे कहाँ घूमते-घूमते.

'चौड़े' हम और सकड़ी बड़ी रहगुज़र !   
ठेलती भीड़ है, कुछ इधर-कुछ उधर,
पार लग ही गए कूदते - कूदते.

शोर बाहर  था, सन्नाटा अन्दर मिला,
जब टटोला तो हर सिम्त पत्थर मिला.
बुझ गयी है नज़र घूरते-घूरते.

नक्श पत्थर पे तहरीर कैसे करूं?
[सब कहा जा चुका है तो अब क्या लिखू,] 
कुछ खरोचा तो, नाख़ून हुए है लहू,
थक गया मैं 'जगह'* ढूँदते-ढूँदते.        *[space]

--mansoor ali hashmi 
  
http://aatm-manthan.com


Friday, July 15, 2011

Terrorism

दहशत 

[इस गीत की तर्ज़ पर यह रचना पढ़े:- 
"आना है तो आ राह में कुछ फेर नही है,
 भगवान् के घर देर है,  अंधेर नही है."]

फिर आग ये अब किसने लगाई है चमन में,
गद्दार छुपे बैठे है अपने ही वतन में.

दहशत जो ये फैलाई तो तुम भी न बचोगे,
क्यों आग लगाए कोई अपने ही बदन में.

नफरत से तो हासिल कभी जन्नत नहीं होगी,
क्यूँ उम्र गुज़ारे है तू दोज़ख सी जलन में.

ज़ख्मो को बयानों से तो भरना नहीं मुमकिन,
तीरों से इज़ाफा ही तो होता है चुभन में.

'वो' क़त्ल भी करके है क्यूँ रहमत के तलबगार,
हम ढूँढ़ते फिरते है, हर इक 'हल' को अमन में. 

--mansoor ali hashmi 

Friday, July 8, 2011

बुढ्ढा होगा तेरा बाप!

बुढ्ढा होगा तेरा बाप!

बुढ्ढा होगया मैरा बाप,
टूटी लाठी मरा न सांप*,        *[भ्रष्टाचार का]
तीन बचे है* गुज़रे सात,         *[यू.पी.ए. का कार्यकाल]
अम्मा-अम्मा करके जाप.



बाक़ी अभी तलक विशवास,
बाबा-अन्ना पर है आस,
अब तो हम ख़ुद के ही दास,
न होना 'दास मलूका' उदास.
सबसे बड़ा है अपना बाप!

--mansoor ali hashmi 

Thursday, July 7, 2011

DELHI-BELLY!


देल्ही- बेल्ली !

देल्ही- बेली,
धूम मचेली.

समझ से बाहर,
'उलट' टपेली.
 
फेंकी 'मामू' ने,  
'ईमू' ने झेली.

बात-बात में,
गाली पेली.
 
'shit' बिखराई,
'sheet' है मैली.

उड़ा कबूतर!  
ख़ाली थैली.

अफरा-तफरी,
वोद्दी, येल्ली!

पढ़ी फ़ारसी,
बने है तेली.

गयी चवन्नी,
बची 'अदेली'.

'आत्ममंथन'
एक पहेली!

लिखी पोस्ट ,
और झट से ठेली.
--mansoor ali hashmi 

Friday, July 1, 2011

Keep it up......


चली-चली, चली-चली, अन्ना जी की गाड़ी चली चली....... 
[ प्रियवर राजेंद्र स्वर्णकार जी नहीं चाहते कि ब्लॉग कि गाड़ी रुके , तो एक धक्का और लगा दिया है! वर्ना  "आत्ममंथन" से हासिल कुछ नहीं हो रहा है!!!]

एक चवन्नी 'चली नहीं' और एक चवन्नी 'चली गयी' !
इन्द्रप्रस्थ की शान कभी थी, न जाने कौन गली गयी.!!

न 'काले' पर हाथ डाल पाए, न 'उजलो' को हथकड़ी पड़ी !
सधी नही बात अनशनो से , बिचारी जनता छली गयी.

हमीं तो सीना सिपर हुए थे दिलाने आज़ादी इस वतन को,
हमारी ही छातीयों पे देखो कि मूंग अबतक दली गयी.

स्वास्थ्य,रक्षा कि अर्थ अपना , हर इक में ख़ामी भरी हुई,
चरित्र ही को गहन लगा है,ये कैसी कालिख मली गयी.

बना न राशन का कार्ड अपना, न पाया प्रमाण ही जनम का,
शिकारियों के जो मुंह तलक गर न मांस , हड्डी , नली गयी. 

जो गाड़ी पटरी पे लाना है तो 'नियम' बने सख्त, ये  ज़रूरी,
इक इन्किलाब और लाना होगा जो बात अब भी टली गयी.

mansoor ali hashmi 

Monday, June 27, 2011

Hodge-Podge


अब करे तो क्या?

लगता नहीं है जी मैरा अबतो ब्लॉग में,
शब्दों में वायरस है , छुपे अर्थ fog में.

होने लगा शुमार अब लिखना भी रोग में,
किस्मत अब आजमाए चलो अपनी योग में. 

हम ढूँढते नहीं इसे अपनों या ग़ैर में,
अब तो सिमट गयी है वफाए भी Dog में.

पहले तलाशे मोक्ष का साधन ही त्याग था,
अब खोजा जा रहा है उसे सिर्फ भोग में.

था सच का बोल बाला तो झूठे थे शर्मसार,
शर्मो हया बची है अब गिनती के लोग में 

mansoor ali hashmi 

Saturday, June 25, 2011

Illusion !


उसको मैं कैसा समझता था, वो कैसा निकला !

जितना बाहर था वो उतना ही अन्दर निकला,
जो  कलंदर नज़र आता था, सिकंदर निकला.

शांत एसा था कि  तल्लीन 'ऋषि' हो जैसे, 
और  बिफरा तो 'सुनामी' सा समंदर निकला.

यूं 'उछल-कूद' की आदत है सदा से उसमे, 
उसके पुरखे को जो खोजा तो वो बन्दर निकला.

'साब' बाहर है, मुलाकात नहीं हो सकती,
'Raid'  आई तो बिचारा वही घर पर निकला.

उम्र  भर जिसको संभाले रखा हीरे की तरह,
वक्ते मुश्किल जो निकाला तो वो पत्थर निकला.



हम 'अनुबोम्ब' तो रखते ही है, फौड़ेंगे उसे,
'भिनभिनाता हुआ, इक पास से 'मच्छर' निकला. 



mansoor ali hashmi