जब भी बोला है सच ही बोला है!
मुंह नहीं उसने अपना खोला है,
उसका चुप रहना ही तो ‘बोला’ है.
दर्द दुनिया का भर लिया दिल में,
हाथ में उसके खाली झोला है.
खाताधारी ‘Swiss’ का बन बैठा,
रत्ती,माशा कभी था, ‘तोला’ है.
आबे ज़मज़म न गंगा जल की तलब,
हाथ में अब तो कोका कोला है.
‘वो’ किसी और को, कोई ‘उसको’,
ठोंकता है सलाम- ‘ठोला’ है.
मुफ्त का माल, बे रहम हो जा,
फ़िक्र क्या करना? हाजमोला है!
क्यों रसन, दार पर सजी फिर से,
सच ये फिर आज कौन बोला है ?
दोनों जानिब नज़र वो आता है,
झूलता रहता है हिंडोला है !
इन्किलाब अब तो यूं भी आते है,
बन गयी जब भी भीड़ ‘टोला’ है.