रग-रग की खबर ! यानी 'शब्दों का सफ़र' , जी हां! 'शब्दों' का ओपरेशन यही होता है. प्रस्तुत है आज की पोस्ट पर प्रतिक्रिया:-
'माँ' की हमारी आँखे भी द्रवित है इन दिनों.
'कोलेस्ट्रल' जमा है 'रगों' में , इसी लिए,
रफ़्तार अपने देश की मद्धम सी हो रही,
'आचार' है 'भ्रष्ट' फिर 'संवेदनहीनता',
मदहोश रहनुमा है तो जनता भी सो रही,
'नलिनी', 'रेनुकाएं'* भी है प्रदूषित इन दिनों, {*नदी के अन्य नाम }
'प्रवाह', कोलेस्ट्रल से है, प्रभावित इन दिनों.
अपनी रगों में खून की गर्दिश भी कम हुई,
'माँ' की हमारी आँखे भी द्रवित है इन दिनों.
'आवेग' के लिए है ज़रूरत 'ऋ'षी की अब,
संस्कारों से 'सिंचित' हो, ये धरती ए मेरे रब,
'बाबाओं' से नजात मिले अब तो देश को,
खुशियों के और उम्मीदों के गाये तराने सब.
-मंसूर अली हाश्मी