Saturday, November 14, 2009

नया पैमाना /Forbes- Power Measuring Machine!


नया पैमाना 

अप-डेट* होके गुंडे पाए नया मुकाम,
दाऊद पूरबी तो, पश्चिम का है ओसाम[a].
सर्वेयरों* को मिलते अब रोज़ नए काम
बदनाम भी हुए तो होता है बड़ा नाम.


*Forbes' List 

Thursday, November 12, 2009

माय फूट!/ My Foot

माय फूट!

वो नहीं बोलता झूट,
''अमची'' न बोला तो 'हूट'
माय फूट!


'आज़मी' को डाला कूट ,
किसको भली लगी करतूत?
माय फूट.


अस्मिता में डाली फूट,
कैसी मानुस में अब टूट,
माय फ़ुट.


चाहें देश ये जाए टूट,
दल को करना है मजबूत,
माय फूट.


नही पूरा हुआ [कर] नाटक,
केवल बदल गया है रूट,
माय फूट.


वे नहीं बोलते झूट, 
खद्दर का पहने है सूट,
माय फूट!


उसने लिए करोड़ो लूट,
जिसको मिली ज़रा भी छूट,
माय फूट.

-मंसूर अली हाशमी

Sunday, November 8, 2009

चटका/Comments!

चटके का झटका 

वाणी मेरी पढ़के उसने आज एक चटका दिया,
अर्थ उनके शब्दों का में ढूंढ़ता ही रह गया,
वो लिखे कि- इतने सुन्दर,कितने सुन्दर आप है,
इस बुढापे में ये कितनी ज़ोर का झटका दिया.


अब ब्लागों पर लगी तस्वीर का मैं  क्या करू,
छप गई; हटती नहीं मुझसे दुबारा क्या करू,
Mail पर भी तो वो आने लगे है आजकल,
थोड़ा-थोड़ा मुझको भी भाने लगे है क्या करू?


नेट पर छपना भी अब तो छोड़ देना चाहिए,
रिश्ता-ए-कागज़ कलम फिर जोड़ देना चाहिए,
नेट के रिश्तो से डर लगने लगा है आजकल,
टिप-टिपाकर pass है ;अब  'मोड़' देना चाहिए. 


-मंसूर अली हाशमी 

Saturday, November 7, 2009

आत्म-प्रसंशा /Self Appreciation

प्राप्ति ....कमेंट्स की!

पीठ खुजाने में दिक्कत है? 
आओ! एसा कर लेते है...
मैं खुजलादूं आपकी...
बदले में , मेरी ;
तुम खुजला देना.


एक हाथ से मैंने दी तो,
दूजे से तुम लौटा देना.


कर से,  कर [tax] ही की भाँति
अधिक दिया तो वापस [refund] लेना.


-मंसूर अली हाशमी

Tuesday, November 3, 2009

Karnataka/scam/terror


कर- नाटक !


# अब दल का खुला है फाटक,
  ''कर'' लो जो भी हो ''नाटक''.
  'येदू' जो  कभी  ''रब्बा'' थे,
  अब क्यों लगते है  जातक.

# धन ढूंढ़ता राजा को पहले,
  अब ''राजा'' को धन की चाहत,
  पैकेज बने तो सत्ता में, 
  बैठो को मिलती है राहत.

# आतंक तलवार दो-धारी,
   दुश्मन से कैसी यारी,
  अब कर ली है तैयारी,
  माता हम तुझ पे वारी 

-मंसूर अली हाशमी 

Monday, October 12, 2009

This Year

समझौता

वातावरण में शोर न पैदा करेंगे हम,
दिल के दीये जला के उजाला करेंगे हम.

फोड़ा पटाखा,फहरा पताका है चाँद पर,
दीपावली वही पे मनाया करेंगे हम.

कुर्बानियां तो ईद की करते है बार-बार,
खुद को भी अपने देश पे कुर्बां करेंगे हम.

पटरी से रेल उतर गई, इंजन बदल गया,
भैय्या! कुछ-एक बरस तो अब चारा चरेंगे हम.

'छठ' हम मना न पायेंगे दरया* में अबकी बार,
चौपाटी पर दुकाँ तो लगाया करेंगे हम.

९ के मिलन के साल में नैनो नही मिली,
नयनो में उनको अपनी बिठाया करेंगे हम.

*समुन्द्र
-मंसूर अली हाशमी

Sunday, October 11, 2009

This Time

अबकी बार ......
                                                                                                                            
'नो बोल' सा लगे है ये नोबल तो अबकी बार,

मंदी के है शिकार धरोहर* भी अबकी बार.

फिल्मों पे इस तरह पड़ी मंदी की देखो मार,
बनियाँ उतर चुका था गयी शर्ट अबकी बार.

कहते है अब करेंगे नमस्ते वो दूर से,
स्वाईन से बच गए, हुआ डेंगू है अबकी बार.

जिन्ना को याद करके तिजोरी भरी कहीं!
सूखा कहीं रहा कहीं सैलाब अबकी बार.

है राष्ट्र से बड़ा* वो जहाँ पर चुनाव है,
पहले थे चाचा शेर, भतीजा है अबकी बार.

परियां तो खिलखिलाती है, सुनते थे अब तलक,
देखा उड़न-परी* को बिलखते भी अबकी बार.


वो [bo] फोर्स लग गया की वो* बाहर निकल गए,
उनका समाप्त हो गया वनवास अबकी बार.

*वैश्विक संपदा
*महाराष्ट्र
*पी.टी. उषा
*क्वात्रोची
-मंसूर अली हाशमी



Saturday, October 10, 2009

Noble Prize

नौ [२००९] में बल से हासिल!  

नो[No] में वैसे ही बल नही होता,

शान्ति में;  जैसे छल नही होता.


कच्चे नारयल में ये मिलेगा पर,
पक्के पत्थर में जल नहीं होता.


सच्चे साधू में मिल भी जाएगा,
हर कोई बा-अमल नही होता.


बाज़* पाए [ई ] बहुत ही सुन्दर पर,
फूल हर एक कमल नही होता.


उसके घर आज आयेंगे- युवराज!
झोंपड़ा क्यां महल नही होता?


कल न आया न आने वाला है,
आज करलो कि कल नही होता.


उसकी कीमत ज़्यादा होती है,
जिसका कोई भी दल नही होता


ऑनलाईन चलन हुआ जबसे,
मिलना अब आजकल नही होता.


अस्मिता भी चुरायी जाती है,
राज 'मन-से' बदल नही होता.


कोढ़ी-कोढ़ी* में बिक ही जाना है,
टीम-वर्क गर सफल नही होता.


ग़म मिले मुस्तकिल हजारो को,
हर कोई 'सहगल' नही होता.

*बाज़= कुछ, चंद
*कोढ़ी=२०[20-20]


-मंसूर अली हाशमी


Tuesday, September 22, 2009

Sallu Miyaa

[With Sallu it is sometimes difficult to keep his shirt on....T. O. I./21.09.09]

Shirt [शर्त?]
पहन लूँ या निकालूं फर्क क्या है,
दिखाऊँ या छुपाऊं हर्ज क्या है,
मैं हर सूरत बिकाऊं शर्त? क्या है,
बताएं कोई इसमें तर्क क्या है?

जो बाहर हूँ, मैं अन्दर से वही हूँ,
मगर Under की दुनिया से नही हूँ,
गलत कितना हूँ मैं कितना सही हूँ,
''दसो-का-दम'' हूँ मैं बेदम नही हूँ.

मिरी हीरोईनों में  तो हया है,
लिबासों में सजी वो पुतलियाँ है,
नही गर एश तो में कैफ* में हूँ,
असिन, रानी है आयशा टाकिया है.

*खुमार

Saturday, September 19, 2009

Panch-Tantra

तंग होती दुनिया 

जहाँ मेहमान भगवन बनके आता,
था हरएक का हरएक से कोई नाता,
जहाँ ,दिन रात होती थी दिवाली,
अंधेरे में ये अब क्यों खो गई है,
बहुत छोटी ये दुनिया हो गई है.

नई रस्मों की है अब वाह - वाही,
लगी है बनने माँ  अब बिन ब्याही,
सफेदी को है खा बैठी स्याही,
बदरवा बिन भी रैना हो गई है
बहुत छोटी ये दुनिया हो गयी है.

फिज़ाओं में चमक थी रौशनी थी,
हवाओं में भी कैसी ताज़गी थी,
अमावस में चंदरमा खो गया है,
खिजाओं से क्या यारी हो गई है,
बहुत छोटी ये दुनिया हो गई है.

बदलती जा रही है चाल देखो,
लपेटे है शनि का जाल देखो,
गुरु लगता है अब पामाल देखो,
कभी केतु तो राहू से ठनी है,
बहुत छोटी ये दुनिया हो गयी है.

नगद, चीजों का बिकना रुक गया है,
चलन में जाली रुपया जुट गया है,
हमारा सब्र भी अब खुट गया है,
उधारी ही उधारी हो गई है.
बहुत छोटी ये दुनिया हो गई है.

परिंदों ने कमी की फासलों में ,
चरिंदे भी रुके है रास्तो में,
सितारे छुप गए है बादलो में ,
हवा भी लगती, जैसे थम गई है,
बहुत छोटी ये दुनिया हो गयी है.

शहर में हर कोई बीमार क्यों है,
मसीहा भी दिखे लाचार क्यों है,
रसायन भी बने हथियार क्यों है,
उलट गिनती शुरू क्या हो गई है?
बहुत छोटी ये दुनिया हो गई है.

खुलेगा पंचतंत्रों का गठन क्या?
छुटेगा पंच तत्वों का मिलन क्या?
गिरेगा इस धरा पर ये गगन क्या?
सितारों की यही तो आगही है!
बहुत छोटी ये दुनिया हो गई है.

-मंसूर अली हाशमी