*("तीसरा खंबा पर श्री दिनेश रायजी द्विवेदी का 'फ़ैसला' पढ़ कर........रचित)
'.क़ब्ज़ा' सच्चा है, 'दावा' झूठा है,बस चला जिसका उसने लूटा है.
लाटरी जैसे...लगते 'निर्णय' है,
भाग्य अच्छे तो, छींका टूटा है.
अब सड़क भी तो उसके अब्बा की,
पहले जिसने भी गाढ़ा खूँटा है.
ख़ाक पर चलना जिसकी किस्मत थी,
अब करो में भी दिखता जूता है.
सब्र से ही बस, अब नही भरता,
दिल का पैमाना जब से टूटा है.
जिसकी ख़ातिर में रूठा दुनिया से,
वो ही अब देखो मुझसे रूठा है.
mansoorali hashmi